न्यूज डेस्क
रिजर्व बैंक ने बैंकों की सकल एनपीए की स्थिति को लेकर कुछ महीने पहले एक तस्वीर पेश की थी। रिजर्व बैंक ने कहा था कि बैंकों की सकल गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) चालू वित्त वर्ष की समाप्ति तक बढ़कर 12.2 प्रतिशत तक पहुंच जायेगी। इससे पहले मार्च 2018 की समाप्ति तक यह अनुपात 11.6 प्रतिशत था।
वहीं एनपीए संकट के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने आरबीआई और सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
उन्होंने कहा कि 2014 तक बैंकों, सरकार और नियामक की विफलता की वजह से डूबे कर्ज के ‘गड़बड़झाले’ की वर्तमान स्थिति पैदा हुई और बैंकों के (बफर) पूंजी आधार में कमी आई। उन्होंने सभी से बैंकिंग क्षेत्र में यथास्थिति की ओर लौटने के ‘प्रलोभन’ से बचने को कहा है।
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गौरतलब है कि उर्जित पटेल ने पिछले साल 10 दिसंबर को रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। सरकार के साथ विवादों के चलते उन्होंने यह कदम उठाया था। अपने इस्तीफे के बाद पटेल ने पहली बार डूबे कर्ज पर प्रतिक्रिया दी है।
उर्जित पटेल ने कहा कि बैंक जहां कुछ जरूरत से ज्यादा कर्ज देते रहे, वहीं सरकार ने भी अपनी भूमिका को ‘पूरी तरह’ से नहीं निभाया। उन्होंने स्वीकार किया कि नियामक को कुछ पहले कदम उठाना चाहिए था।
पूर्व गवर्नर पटेल 3 जुलाई को स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश के बैंकिंग क्षेत्र के चिंता के क्षेत्रों को रेखांकित किया।
इनमें विशेषरूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के (एनपीए) और मौजूदा पूंजी बफर को कुछ बढ़ाचढ़ाकर दिखाया जा रहा है और यह बड़े दबाव से निपटने में अपर्याप्त है।
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पटेल ने कहा, ”हम इस हालत में कैसे पहुंचे? काफी आरोप हैं। 2014 से पहले सभी शेयरहोल्डर अपनी भूमिका सही से निभाने में विफल रहे इनमें बैंक रेगुलेटर और सरकार सभी शामिल हैं।
पटेल ने कहा कि हमें पुरानी राह पर लौटने का प्रलोभन छोडऩा होगा। अपने संबोधन में कहा, ”मौद्रिक नीति पर राजकोषीय दबदबे के बाद अब हम बैंकिंग नियमनों पर राजकोषीय दबदबा देख रहे हैं। पटेल ने कहा कि वित्तीय प्रणाली में अंतर संपर्क के मद्देनजर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की संपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा से बचा नहीं जा सकता।
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यहां उल्लेखनीय है कि 2014 के बाद जब केंद्र में सरकार बदली वहीं उस समय रघुराम राजन गवर्नर के पद पर थे। उस समय रिजर्व बैंक ने संपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा शुरू की, जिससे प्रणाली में बड़ी मात्रा में दबाव वाली संपत्तियों का पता चला। इन कदमों से बैंकों की अर्थव्यवस्था की जरूरत के लिए कर्ज उपलब्ध कराने की क्षमता प्रभावित हुई।
क्या है एनपीए
बैंकों के लोन को तब एनपीए में शामिल कर लिया जाता है, जब तय तिथि से 90 दिनों के अंदर उस पर बकाया ब्याज तथा मूलधन की किस्त नहीं चुकाई जाती। बढ़ते एनपीए का बैंकों पर तीन मुख्य प्रभाव पड़ता है। उनकी लोन देने की क्षमता घट जाती है। मुनाफे में कमी आती है और उनके नकदी का प्रवाह घट जाता है।
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साल 2008 में भारतीय कंपनियों को भी मंदी का शिकार होना पड़ा था। मंदी के दौर से बाहर आने के बाद बैंकों ने बड़ी कंपनियों को कर्ज देने में उनकी वित्तीय स्थिति और क्रेडिट रेटिंग की अनदेखी की। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था एनपीए के जाल में फंसने लगी।