जुबिली न्यूज डेस्क
एचआईवी को हराने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति टिमोथी रे ब्राउन आखिकार कैंसर से हार गए। ब्राउन जिन्हें “बर्लिन पेशेंट” के नाम से जाना जाता था, उनका निधन हो गया है।
ब्राउन के पार्टनर टिम हॉफगेन ने सोशल मीडिया पोस्ट कर बताया कि पांच माह तक कैंसर से लडऩे के बाद ब्राउन की मौत हो गई।
ब्राउन एचआईवी संक्रमण को हराकर उससे ठीक होने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति थे। वह एचआईवी से पीड़ित लाखों लोगों की उम्मीद के प्रतीक थे।
अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की घोषणा के मुताबिक एचआईवी को हराने वाले टिमोथी रे ब्राउन कैंसर से एक लंबी लड़ाई लड़े पर अंत में वो हार गए।
यह भी पढ़ें : ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक…
यह भी पढ़ें : लॉ की मौत हो गई सिर्फ ऑर्डर ही बचा है : RIP JUSTICE
यह भी पढ़ें : पीटीआई कवरेज को ‘देशद्रोही’ ठहराने वाले पत्र को प्रसार भारती बोर्ड ने नहीं दी थी मंजूरी
एक दशक से भी ज्यादा पहले जब ब्राउन ने घातक एड्स बीमारी फैलाने वाले एचआईवी को हराया था तब वो दुनिया भर में उस बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों के लिए उम्मीद का एक प्रतीक बन गए थे। वह एचआईवी को हरा दिए पर कैंसर से हार गए।
ब्राउन एक बार कैंसर को भी हरा चुके थे, लेकिन वह फिर वापस आ गया। पिछले कई महीनों से उनका अमेरिका के कैलिफोर्निया के पाम स्प्रिंग्स स्थित उनके घर पर इलाज चल रहा था।
ब्राउन के निधन पर अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्ष अदीबा कमरुलजमां ने कहा, “अपने सभी सदस्यों की तरफ से आईएएस टिमोथी के निधन पर उनके पार्टनर टिम, उनके परिवार और उनके दोस्तों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है।”
कमरुलजमां ने यह भी कहा, “हम टिमोथी और उनके डॉक्टर गेरो हटर के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने वैज्ञानिकों के लिए यह तलाशने के लिए रास्ते खोले कि एड्स का इलाज संभव है।”
वहीं आईएएस की अगली अध्यक्ष नामित हो चुकीं शैरन लेविन ने ब्राउन की एचआईवी के इलाज को लेकर एक “चैंपियन और समर्थक” के रूप में सराहना की है। उन्होंने कहा, “वैज्ञानिक समुदाय को उम्मीद है कि एक दिन हम एचआईवी का एक ऐसा इलाज खोज कर ब्राउन की विरासत को सम्मान देंगे, जो सुरक्षित, सस्ती और सबके लिए उपलब्ध होगी। ”
यह भी पढ़ें : एमनेस्टी : यूरोपीय संघ की चिंता के बीच गृह मंत्रालय ने क्या कहा ?
यह भी पढ़ें : LIC में 25 पर्सेंट हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार का ये है प्लान
यह भी पढ़ें : प्रेसिडेंशियल डिबेट : “शट अप” पर उतर आए ट्रंप और बाइडन
साल 1995 में ब्राउन में एचआईवी का संक्रमण पाया गया था। उस समय वह बर्लिन में पढ़ाई कर रहे थे। इसके एक दशक बाद उनको ल्यूकेमिया हो गया था, जो एक तरह का कैंसर होता है जो खून और हड्डियों के मज्जे या बोन मेरो को प्रभावित करता है।
डीडब्ल्यू के अनुसार उनके ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में उनके डॉक्टर ने एक ऐसे डोनर से स्टेम सेल प्रतिरोपण का इस्तेमाल किया था जिसे एक दुर्लभ जेनेटिक म्युटेशन था।
उस म्युटेशन की वजह से उस डोनर के पास एचआईवी से बचाव की प्राकृतिक रूप से क्षमता थी। डॉक्टर को उम्मीद थी कि इस दुर्लभ म्युटेशन की वजह से ब्राउन की दोनों बीमारियां ठीक जाएंगी। प्रतिरोपण के दो दर्दनाक और खतरनाक दौरों के बाद उन्हें सफलता मिली।
यह भी पढ़ें : यूपी : अब बलरामपुर में हुई हाथरस जैसी हैवानियत
यह भी पढ़ें : हाथरस गैंगरेप मामले में सोनिया ने की न्याय की मांग, कहा- मरने के बाद भी…
डॉक्टरों ने 2008 में ब्राउन को दोनों ही बीमारियां से मुक्त घोषित कर दिया। शुरुआत में उनकी पहचान गुप्त रखने के लिए उन्हें एक सम्मेलन के दौरान “द बर्लिन पेशेंट” का नाम दिया गया।
लेकिन ब्राउन ने दो साल बाद फैसला किया कि वह चुप नहीं रहेंगे। उन्होंने अपनी चुप्पी तोडऩे का फैसला लिया और फिर धीरे धीरे वो एक पब्लिक फिगर बन गए। वह अपने तजुर्बे पर भाषण और साक्षात्कार देने लगे और उन्होंने अपने एक प्रतिष्ठान की भी शुरुआत की।
2012 में ब्राउन ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था, “मैं इस बात का जीता जागता प्रमाण हूं कि एड्स का इलाज हो सकता है। एचआईवी से ठीक हो जाना एक बहुत ही बढिय़ा एहसास है।”
ब्राउन के ठीक होने के 10 साल बाद, “लंदन पेशेंट” के नाम से जाने वाले एक दूसरे एचआईवी के मरीज के बारे में सामने आया कि ठीक उसी तरह के प्रतिरोपण के 19 महीनों बाद उसे फिर से कैंसर हो गया था।
एडम कॉस्टिलेयो नामक वो मरीज आज एचआईवी से मुक्त है। अगस्त में खबर आई कि कैलिफोर्निया में एक महिला है जो कि बिना किसी एंटी-रेट्रोवायरल इलाज के एचआईवी से ठीक हो गई। माना जाता है कि वो मज्जे के जोखिम भरे प्रतिरोपण को कराए बिना ठीक होने वाली पहली व्यक्ति हैं।