कृष्णमोहन झा
हमारे देश में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और उसके फैसलों पर विवादों का सिलसिला न जाने कब से चला आ रहा है। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के इशारों पर काम करने के आरोप भी चुनाव आयोग पर जब तब लगते रहे हैं परंतु मद्रास हाईकोर्ट ने देश के पांच राज्यों में संपन्न कराए गए विधानसभा चुनावों के संदर्भ में चुनाव आयोग के विरुद्ध जो तीखी टिप्पणियां की हैं वे अभूतपूर्व हैं ।
इन टिप्पणियों ने चुनाव आयोग को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। देश की किसी अदालत ने अतीत में शायद ही कभी ऐसी तल्ख़ टिप्पणियां चुनाव आयोग के बारे में की होंगी । चुनाव आयोग से मद्रास हाईकोर्ट की नाराजगी इस बात को लेकर है कि पांच राज्यों में विधानसभा की चुनावों की प्रक्रिया के दौरान उसने कोरोना की दूसरी लहर के ख़तरों की अनदेखी कर दी।
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराते हुए यहां तक कह दिया कि चुनाव आयोग के अफसरों के विरुद्ध हत्या के मामले दर्ज किए जाने चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस बात के लिए भी फटकार लगाई है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों में जुटने वाली भारी भीड पर अंकुश लगाने में चुनाव आयोग असफल रहा ।
मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग निर्देश दिया है कि वह 30 अप्रैल तक कोर्ट को बताए कि उसने दो मई को होने वाली मतगणना के दौरान कोविड गाइड लाइंस के पालन हेतु क्या इंतजाम किए हैं। कोर्ट ने आयोग से साफ कह दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह मतगणना रुकवाने का आदेश भी जारी कर सकता है। मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश तमिलनाडु के परिवहन मंत्री एम आर विजय भास्कर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसके निर्वाचन क्षेत्र में 77 उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं।
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मतगणना के दौरान सभी उम्मीदवारों के एजेंट को चुनाव आयोग कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार मतगणना केन्द्र में स्थान उपलब्ध नहीं करा सकता । इसके जवाब में चुनाव आयोग ने कोर्ट से कहा था कि वह मतगणना के लिए सभी आवश्यक इंतजाम कर रहा है। मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद चुनाव आयोग तत्काल हरकत में आया और उसने 2 मई को होने वाली मतगणना में विजयी घोषित उम्मीदवारों को जीत का जश्न मनाने से रोकने के आदेश जारी कर दिए हैं।
चुनाव आयोग ने विजयोल्लास में आयोजित किए जाने वाले जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया है।चुनाव आयोग ने देश के पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु ,केरल,असम की विधानसभाओं के चुनाव कार्यक्रम की जिस दिन घोषणा की थी उसी दिन से वह आलोचनाओं से घिरा हुआ है। चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों की विधानसभाओं का जो चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया उसके अनुसार पश्चिम बंगाल को छोड़कर बाकी चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हेतु मतदान का आखिरी चरण भी 6 अप्रैल को संपन्न हो चुका था परंतु पश्चिम बंगाल में चूंकि उसने आठ चरणों में मतदान संपन्न कराने का फैसला कर लिया था इसलिए राज्य में 29अप्रैल तक मतदान की प्रक्रिया जारी रही।
विगत एक पखवाड़े में जब देश के अनेक राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर भयावह रूप ले चुकी थी तब भी चुनाव आयोग राज्य में मतदान प्रक्रिया को 8 चरणों में ही संपन्न कराने के फैसले पर अड़ा रहा। उसने इस कड़वी हकीकत को नजरंदाज कर दिया कि ज्यादा लंबे समय तक चुनावी रैलियां होने से कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से पश्चिम बंगाल के भी प्रभावित होने की आशंका बनी रहेगी। चुनाव आयोग ने भले ही इस आशंका की अनदेखी कर दी परंतु रैलियों में जुटने वाली भीड़ ने इस आशंका को सच साबित कर दिया।
दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को जो फटकार लगाई है उसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है। अगर उसने देश में कोरोना की दूसरी लहर के खतरे को देखते हुए पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कार्यक्रम को इतना लंबा न खींचा होता तो मद्रास हाईकोर्ट की बेहद सख्त टिप्पणियों से शायद बच सकता था।
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विगत दिनों जब देश के अनेक राज्य कोरोना की पहली लहर से भी अधिक भयावह दूसरी लहर की चपेट में आ गए तो यह अनुमान लगाया जा रहा था कि चुनाव आयोग राज्य में विभिन्न राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों में जुटने वाली भारी भीड़ के कारण राज्य में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी की आशंका को देखते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा के शेष तीन चरणों के मतदान को एक ही चरण में संपन्न कराने का फैसला कर सकता है परंतु चुनाव आयोग ने राज्य में सभी राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों के आयोजन के लिए संध्या 7बजे तक की समय सीमा तय करने के साथ ही कुछ पाबंदियां तो लगा दी परंतु बाकी तीन चरणों की मतदान प्रक्रिया को एक ही चरण में संपन्न कराने के लिए वह तैयार नहीं हुआ।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी राज्य में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मतदान के शेष तीन चरणों की प्रक्रिया को एक ही बार में संपन्न कराने की मांग की थी। यद्यपि चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर विचार हेतु एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी परन्तु उस बैठक में पश्चिम बंगाल में मतदान की प्रक्रिया जल्द से जल्द समेटने पर कोई फैसला नहीं किया गया।
यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी भी यही चाहती थी कि राज्य में मतदान कार्य क्रम में कोई परिवर्तन न किया जाए क्योंकि अपनी चुनावी रैलियों में जुटने वाली भारी भीड़ ने उसके अंदर यह भरोसा जगा दिया है कि राज्य विधानसभा के इन चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल कर अब इतिहास रचने वक्त आ चुका है और अगर तीन चरणों का मतदान एक ही चरण में संपन्न कराया गया तो उसकी चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है।
चुनाव आयोग ने जब पश्चिम बंगाल में शेष तीन चरणों की मतदान प्रक्रिया एक चरण में समेटने से इंकार कर दिया तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी कि वे अब केवल 26 अप्रैल को कोलकाता में अपनी पार्टी की एक प्रतीकात्मक चुनावी रैली संबोधित करेंगी। उसके पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी पश्चिम बंगाल में अपनी बाकी बची सभी रैलियां रद्द करने की घोषणा कर चुके थे।
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राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने जब अपनी अपनी पार्टियों की बाकी बची चुनावी रैलियों को रद्द करने की घोषणा की तो भाजपा को असमंजस की स्थिति का सामना करने के लिए विवश होना पड़ा। इसके पश्चात भाजपा ने भी यह घोषणा की कि अब उसकी रैलियों में पांच सौ से ज्यादा लोग शामिल नहीं होंगे।
उधर जब देश के क ई राज्यों में आक्सीजन की कमी ने भयावह रूप ले लिया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पश्चिम बंगाल में होने वाली रैलियों को रद्द करके दिल्ली में मुख्यमंत्रियों की बैठक के आयोजन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्होंने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक के अलावा भी कई उच्च स्तरीय बैठकों के माध्यम से कोरोना संकट की विकरालता से निपटने के प्रभावी उपायों पर सार्थक चर्चा की ।
इसमें दो राय नहीं हो सकती कि राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने राज्य में अपनी पार्टियों की बाकी चुनावी रैलियों को रद्द करने की घोषणा करके वास्तव में भाजपा को इस बात के लिए विवश कर दिया कि वह भी राज्य में अपनी बाकी चुनावी रैलियों को रद्द करने का फैसला करें। राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने जो भी फैसला किया उसके पीछे कुछ राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं परंतु अगर यह पहल भाजपा की ओर से की जाती तो राज्य में भाजपा की स्थिति और मजबूत हो सकती थी।
वैसे भी अगर उसे यह भरोसा हो चुका था कि 2 मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव परिणाम उसके लिए सत्तारोहण का संदेश लेकर आ रहे हैं तो पार्टी की शेष चुनावी रैलियों के रद्द करने से उसकी जीत की संभावनाओं के प्रभावित होने की कोई आशंका उसे नहीं होना चाहिए था।
अगर भाजपा यह फैसला राहुल गांधी और ममता बनर्जी से पहले करती तो वह पश्चिम बंगाल की जनता को यह संदेश देने की स्थिति में होती कि उसकी पहली प्राथमिकता राज्य की जनता को कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चपेट में आने से बचाना है। चुनाव तो आते जाते रहते हैं।
आज स्थिति यह है कि कोलकाता में कोरोनावायरस के संक्रमण की दर 45 प्रतिशत तक हो जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है । राज्य के दूसरे शहरों में स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। राज्य में चुनावी रैलियों के आयोजन में किसी राजनीतिक दल ने कोई कसर नहीं छोड़ी परंतु आज राज्य में कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार भाजपा को इसीलिए ठहराया जा रहा है क्योंकि उसकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ रही थी।
भाजपा आज इस असमंजस में भी है कि आगामी 2 मई को होने वाली मतगणना में अगर उसकी प्रचंड बहुमत से विजय होती है तब भी ढोल धमाके के साथ अपनी ऐतिहासिक जीत का जश्न मनाना उसके लिए संभव नहीं होगा। पश्चिम बंगाल में पहली बार सत्ता में आने का सुनहरा स्वप्न साकार करने में अगर वह सफल हो जाती है तो उसकी सबसे पहली प्राथमिकता राज्य को कोरोना की दूसरी लहर की विभीषिका से बचाना होगा और यह चुनौती उसके लिए आसान नहीं होगी।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)