जुबिली न्यूज डेस्क
जी20 समिट होने से पहले ही भारत की चिंता बढ़ा दी है. दरअसल जलवायु परिवर्तन को लेकर जी20 समूह के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे हैं. ख़बर के मुताबिक़, यूक्रेन पर कड़ा रूख़ ना रखने को लेकर महीनों तक चली खींचतान के बाद, जी-20 समूह अब सितंबर में नेताओं की बैठक से पहले जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर आम सहमति नहीं बन पाया है.जुलाई में ऊर्जा परिवर्तन, पर्यावरण और जलवायु पर दो जी-20 मंत्रिस्तरीय बैठकों में उत्सर्जन का टारगेट, जीवाश्म ईंधन में कटौती और जलवायु वित्त सहित कई प्रमुख मुद्दों पर एक राय नहीं बन पाई और इसके बाद ही चिंताएं बढ़ गई हैं.
पहली बैठक गोवा में जी-20 एनर्जी ट्रांजिशन वर्किंग ग्रुप की थी, उसके बाद बीते महीने चेन्नई में जी-20 पर्यावरण और जयवायु सस्टेनेबिलिटी वर्किंग ग्रुप की बैठक हुई.बैठक के बाद अध्यक्ष ने जो बैठक की सारांश रिपोर्ट बनाई उसमें ऐसे मुद्दे हैं, जिसमें जी-20 सदस्यों के बीच कोई ‘सहमति’ नहीं बन पाई. खासकर ‘फ़ेज़ आउट’ यानी कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह बंद करना और जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में कमी के प्रस्ताव का सऊदी अरब और भारत सहित कई देश विरोध कर रहे हैं.इन देशों का कहना है कि फ़ेज़ आउट की जगह “फेज़ डाउन” जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाएं.
सहमति बनाना काफ़ी मुश्किल
सूत्रों के मुताबिक़ जी-20 वार्ताकारों ने जलवायु बैठक से पहले “रात भर और दो दिनों तक सुबह पाँच बजे तक” जलवायु मुद्दों पर चर्चा करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि आम सहमति से एक प्रस्ताव तैयार होना चाहिए. इस बैठक में अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी सहित कई देशों के प्रमुख अधिकारियों ने भाग लिया.
आख़िरकार जब सभी देशों के बीच तालमेल बैठाना असंभव लगने लगा तो भारतीय वार्ताकारों ने कहा कि वे मतभेद के सभी बिंदुओं को बयान में दर्ज करना करेंगे, ताकि 9 और 10 सितंबर को “नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान असहमति के मुद्दों पर समाधान निकालने का विकल्प” तलाशा जा सके.
फ़ंडिंग की कमी और भारत की चुनौती
ईसीएसडब्ल्यूजी की बैठक के अंत में अध्यक्ष ने जो बयान जारी किया, उसके अनुसार, सदस्यों के बीच 2025 तक वैश्विक उत्सर्जन लक्ष्य को चरम पर पहुँचाने और 2035 तक उत्सर्जन में 60% की कटौती (2019 की तुलना में) करने का लक्ष्य रखा गया है. भारत सहित विकासशील देशों ने इस लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है.एक मुद्दा और है, जिस पर विवाद है, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित विकसित देशों ने ग़रीब देशों को जलवायु परिवर्तन के तहत किए जा रहे बदलावों को लागू करने के लिए100 अरब डॉलर की आर्थिक मदद देने का वादा किया था. ये मदद 2020 से दी जानी थी.
इस बैठक की सारांश रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारी ने दर्ज किया है कि जी -20 सदस्य इस बात पर भी सहमत नहीं थे, जिस पर वह पहले ही सहमत हो चुके हैं.चेन्नई में हुई बैठक की सारांश रिपोर्ट का पैराग्राफ़ 64 कहता है, “पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह के आदेश पर जी-20 सदस्यों के बीच अलग-अलग विचार हैं.
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ऊर्जा परिवर्तन के मुद्दों और उन्हें इस दस्तावेज़ में किस लहजे में लिखा जाए किया जाए, इस पर भी अलग-अलग विचार हैं. ”इसके अलावा, जलवायु विशेषज्ञ और कार्यकर्ता समूह इस बात से निराश हैं कि बैठक में जो उम्मीद थी उसके उलट जलवायु परिवर्तन का मुद्दा “हल्का” नज़र आ रहा है. संभव है ये नवंबर में दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र COP28 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भी बातचीत को पटरी से उतार सकती है.
अब तक यूक्रेन युद्ध को लेकर में मतभेद मुख्य कारण रहा है, जिसके कारण अब तक जी-20 मंत्रिस्तरीय बैठक के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया.लेकिन अब जलवायु परिवर्तन पर आम सहमति वाली भाषा चुन पाना वार्ताकारों के सामने चुनौती बढ़ा रहा है. भारत ऐसे जी20 बैठक की मेज़बानी नहीं करना चाहता, जहाँ बैठक के बाद “नेताओं के साझा बयान” जारी ना किए जा सकें.