जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल के 24 परगना में श्राद्ध की तैयारी कर रहे एक घर में फोन की घंटी बजी तो रोने-धोने में लगा परिवार खुशी से झूम उठा. अचानक आये इस फोन ने स्वास्थ्य विभाग की गैर ज़िम्मेदारी पर सवालिया निशान ज़रूर लगा दिया लेकिन इस परिवार में अचानक से खुशियाँ लौट आईं.
हुआ यूं कि 24 परगना जिले के बिराटी में रहने वाले 75 साल के शिवदास बंद्योपाध्याय को कोरोना संक्रमित हो जाने की वजह से 11 नवम्बर को बारासात के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 13 नवम्बर को अस्पताल से शिवदास के निधन की खबर आई.
निधन की सूचना के बाद परिवार अस्पताल पहुंचा लेकिन कोविड प्रोटोकाल के मुताबिक़ लाश को प्लास्टिक में सील कर परिवार को दिखा दिया गया. प्रोटोकाल से ही उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया. कोरोना की वजह से हुई मौत की वजह से परिवार को यह मलाल था कि मरने के बाद भी वह चेहरा नहीं देख पाए.
परिवार में गम का माहौल था. श्राद्ध की तैयारियां चल रही थीं कि अचानक से अस्पताल से फोन आया कि आपके पिताजी ठीक हो गए हैं. उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आ गई है. अस्पताल से घर ले जाने के लिए आप लोग एम्बुलेंस का इंतजाम कर लें.
श्राद्ध की तैयारी कर रहे घर वाले इस फोन से हैरान हो गए. वह तत्काल अस्पताल पहुंचे तो वहां घर का मुखिया सुरक्षित मौजूद था. घर वाले उन्हें खुशी-खुशी घर ले आये लेकिन अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि स्वास्थ्य विभाग ने जिसकी लाश पैक करके अंतिम संस्कार के लिए दी थी वह लाश आखिर किसकी थी?
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स्वास्थ्य विभाग ने अपनी सफाई में कहा है कि 13 नवम्बर को जिस कोरोना मरीज़ की मौत हुई थी उनकी उम्र भी उतनी ही थी. गलती से विभागीय कर्मचारियों ने लाश इस परिवार को सौंप दी. इसके लिए चार सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी गई है. रिपोर्ट आते ही कार्रवाई की जायेगी.