जुबिली न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के 23 साल के आरोपी से पूछा कि क्या वह पीड़िता से शादी करोगे?
बलात्कार पीड़िता के आरोपी ने शीर्ष अदालत से गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की थी। आरोपी सरकारी कर्मचारी है और उसने पीड़िता के साथ दुष्कर्म तब किया था जब वह नाबालिग थी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता आनंद दिलीप लेंगडे से पूछा, “क्या आप उनसे शादी करेंगे?”
इस पर अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें अपने मुवक्किल से निर्देश लेने की जरूरत है और इसके लिए मोहलत मांगी, लेकिन कोर्ट ऐसा करने की इच्छुक नहीं थी।
बहस के दौरान आरोपी के वकील ने पीठ को दलील दी कि उनका मुवक्किल एक सरकारी कर्मचारी है और मामले में गिरफ्तारी के कारण उसे निलंबन का सामना करना पड़ेगा।
इस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, “आपको उस नाबालिग लड़की के साथ छेडख़ानी और बलात्कार करने से पहले सोचना चाहिए था।”
चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि सरकारी कर्मचारी होने के नाते याचिकाकर्ता को अपने कुकृत्यों के नतीजों के बारे में सोचना चाहिए था। हालांकि उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालत याचिकाकर्ता को लड़की से शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर रही है।
बेंच ने कहा, “हम आपको शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं, नहीं तो आप कहेंगे कि हम शादी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।”
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इसके बाद जब इस मामले की दोबारा सुनवाई हुई तो आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि वह लड़की से शादी नहीं कर सकता है, क्योंकि वह शादीशुदा है।
मामले में एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद बेंच ने याचिकाकर्ता की जमानत की मांग पर विचार करने से इनकार कर दिया और उसे नियमित जमानत लेने की छूट दी।
अदालत ने याचिकाकर्ता को चार सप्ताह तक गिरफ्तारी से भी सुरक्षा प्रदान की।
क्या है मामला?
बलात्कार पीड़िता ने आरोप लगाया था कि जब वह 16 साल की थी, तब आरोपी, जो कि उसका दूर का रिश्तेदार है, ने उसका बलात्कार किया था। पीड़िता ने आरोप लगाया कि शुरू में आरोपी की मां ने शादी के लिए सहमति दी थी, लेकिन बाद में याचिकाकर्ता की मां ने शादी से इनकार कर दिया।
पीड़िता ने साल 2019 में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 417, 506 और यौन अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धारा 4 और धारा 12 के तहत मामला दर्ज कराया था।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी साल 5 फरवरी को याचिकाकर्ता को दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दी थी। इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।