जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी का कहर झेल रहे दुनिया के ज्यादातर देश बेसब्री से कोरोना वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं। दुनिया के कई देशों में कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा है और कई वैक्सीन ट्रायल के अंतिम चरण में पहुंच चुका है। अब आलम यह है कि कई देशों के बीच में तो बाजार में सबसे पहले कोरोना वैक्सीन उतारने की होड़ लगी हुई है तो वहीं दूसरी ओर कोरोना वैक्सीन पर कब्जे के लिए दुनियाभर में जासूसों के बीच जंग छिड़ी हुई है।
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पिछले महीने अमेरिका ने चीन पर आरोप लगाते हुए कहा था कि चीन की नजर हमारे कोरोना वैक्सीन पर चल रहे शोध पर है। दरअसल सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि कई देशों के जासूस कोरोना वायरस वैक्सीन के डेटा हासिल करने के लिए रिसर्च सेंटरों की खाक छान रहे हैं। दरअसल उन्हें लग रहा है कि यह उनके लिए बेहद आसान लक्ष्य होगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चीनी जासूस कोरोना वायरस वैक्सीन के डेटा को हासिल करने के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों की खाक छान रहे हैं। उन्हें यह लग रहा है कि दवा कंपनियों की जासूसी से आसान अमेरिकी विश्वविद्यालयों पर नजर रखना है। ये चीनी जासूस यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना और अन्य स्कूलों पर डिजिटल निगरानी रख रहे हैं जहां पर कोङ्क्षवड-19 वैक्सीन को लेकर व्यापक रिसर्च चल रहा है।
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कोरोना की इस लड़ाई में जीत के लिए केवल चीनी जासूस ही नहीं बल्कि रूस की प्रमुख खुफिया एजेंसी एसवीआर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में कोविड वैक्सीन नेटवर्क पर निशाना साध रही है। इस गुप्त निगरानी का सबसे पहले भंडाफोड़ ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी ने किया जो फाइबर ऑप्टिक केबल्स की निगरानी करती है। यही नहीं ईरान ने कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर हो रहे शोध को चुराने में लगा हुआ है।
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अमेरिका ने तेज की विरोधियों के खिलाफ जासूसी तेज की
अमेरिका ने इससे निपटने के लिए अमेरिकी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को बढ़ा दिया है और साथ ही अपने विरोधियों के खिलाफ जासूसी तेज कर दी है। अमेरिका के सभी शत्रुओं ने अमेरिकी शोध को चुराने के लिए प्रयास तेज कर दिया है।
नाटो के खुफिया अधिकारी जो अब तक रूसी टैंकों और आतंकी नेटवर्क के मूवमेंट पर नजर रखते हैं, उन्हें अब वैक्सीन के शोधों को चुराने के रूसी प्रयासों पर नजर रखने के लिए लगा दिया गया है।
वर्तमान और पूर्व जासूसों के मुताबिक कोरोना महामारी ने हाल के दिनों में शांति के समय सबसे तेजी के साथ खुफिया एजेंसियों को एक-दूसरे के खिलाफ जंग के लिए बाध्य कर दिया है। खुफिया एजेंसियों के बीच जारी यह जंग कुछ उसी तरह से हो रहा है जैसे कोल्ड वॉर के दिनों में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच होता था।