Tuesday - 29 October 2024 - 1:19 AM

यूपी में उच्च शिक्षा का हाल, बिना परीक्षक के ही कराई जा रही परीक्षा

ओम प्रकाश सिंह

अयोध्या। रामनगरी का अवध विश्वविद्यालय अवैध बनने की ओर उन्मुख हो चला है। यूपी में उच्च शिक्षा का हाल बंया करने के लिए अवध विश्वविद्यालय ही काफी है।

बिना परीक्षक के परीक्षाएं कराई जा रही हैं तो प्राइमरी के शिक्षक से मूल्यांकन कराया जा रहा है। एक ही शिक्षक को वाह्य व आंतरिक परीक्षक बना दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री और राज्यपाल के यहां अवध विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों का अंबार लगा है। दो जांच समितियां भी गठित हुई हैं, उनके परिणाम भविष्य के गर्भ में हैं। आरोपी अधिकारी कुलसचिव के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है और विश्वविद्यालय में नित नए कारनामे अंजाम दिए जा रहे हैं। एक पद एक व्यक्ति के उच्च शिक्षा मंत्री के आदेश को दरकिनार कर दिया गया है। शिक्षक संघ ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री का दरवाजा खटखटाया है।

भ्रष्टाचार के आरोपों पर दो जांच समितियां गठित हैं लेकिन आरोपी बेखौफ नियम विरुद्ध कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। विश्वविद्यालय में लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला घोंट दिया गया है।

कार्य परिषद अधूरी है। कोर्ट का चुनाव इसलिए नहीं कराया जा रहा है कि चुने हुए छात्र प्रतिनिधि अधिकारियों के गलत कार्यों पर नकेल डालते हैं।

प्राइमरी के शिक्षक भी परीक्षक बनाए जा रहे हैं, यह अवध विश्वविद्यालय में ही हो सकता है। तमाम ऐसे भी परीक्षक बनाए गए हैं जो किसी भी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में शिक्षक ही नहीं है।

इसमें शिक्षक उन लोगों को चढ़ावा चढ़ा रहे हैं जो परीक्षक बनाते हैं। यह कारनामा वह लोग अंजाम दे रहे हैं जो कुलसचिव के खास हैं और वर्षों से गोपनीय विभाग में जमे हुए हैं।

सब तरफ से उंगली कुलसचिव की कार्यप्रणाली पर है, लेकिन मजाल है कि कोई उन्हें टस से मस कर सके। नियमित कुलपति के अभाव में कुलसचिव ‘उमानाथ’ ही विश्वविद्यालय के ‘नाथ’ हैं, वही भ्रष्टाचार के भी नाथ हैं।

लखनलाल शरण सिंह महाविद्यालय गोंडा के एक शिक्षक को कांती महाविद्यालय रामनगर बाराबंकी में वाह्य व आंतरिक परीक्षक बना दिया गया।

यही नहीं बिना परीक्षक के गए ही परीक्षा भी संपन्न करा ली गई। इसकी लिखित शिकायत शिक्षक ने कुलपति से किया है। ऐसी तमाम घटनाओं का आदी बन चुका है अवध विश्वविद्यालय।

शिक्षक संघ अध्यक्ष डॉ विजय प्रताप सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय की गिरती हुई गरिमा को बचाने की जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों की भी है ।

लगातार हो रही परीक्षाओं से महाविद्यालयों में पठन-पाठन का काम ठप्प हो गया है। एक परीक्षा खत्म हुई नहीं की दूसरी शुरू हो जाती है। बिना सहमति महाविद्यालयों को जबरन परीक्षा केंद्र बनाना पूर्णतया अनुचित है। विश्वविद्यालय में मौखिकी एवं प्रायोगिक परीक्षा के लिए कुछ और नियम है और मूल्यांकन के लिए कुछ और। शिक्षक परास्नातक मौखिकी परीक्षा के लिए योग्य माना जा रहा है पर विश्वविद्यालय उन्हें मूल्यांकन के लिए योग्य नहीं मानता है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।

शिक्षक संघ ने कई बार यह मांग की कि शिक्षकों को प्रैक्टिकल और वाइबा की सूचना विश्वविद्यालय द्वारा दी जानी चाहिए, किंतु इस पर कोई असर नहीं हुआ।

कभी कभी महाविद्यालयों द्वारा इसकी शिक्षकों को सूचना दी जाती है और कभी-कभी महाविद्यालय शिक्षक की जानकारी के बिना भी परीक्षाएं हो जाती हैं। यह प्रवृत्ति विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही घातक है। शिक्षक संघ अध्यक्ष ने स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में कार्यरत शिक्षकों के वेरिफिकेशन का भी मुद्दा उठाया है।‌

महाविद्यालय द्वारा परीक्षक बनकर आए शिक्षकों से मनमाना नंबर देने का दबाव बनाया जाता है। उनकी इच्छा के अनुरूप नंबर न देने पर उन्हें अपमानित होना पड़ता है। जिसकी शिकायत परीक्षा नियंत्रक से करने पर भी कोई समाधान नहीं मिलता है। जिससे ऐसे महाविद्यालयों में इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।

शिकायतकर्ता को ही दंडित कर उसे उसकी जगह दूसरा परीक्षक नियुक्त कर दिया जाता है। इसी तरह मूल्यांकन में भी यही खेल चल रहा है। पचहत्तर प्रतिशत अधिकतम अंक की सीमा का निरन्तर उल्लंघन हो रहा है, जबकि इससे अधिक नंबर पाने वाले छात्रों का स्पष्टीकरण परीक्षक द्वारा दिए जाने का प्रावधान है।

पहले पचास से कम छात्र होने पर महाविद्यालयों को परीक्षा केंद्र नहीं बनाए जाने की परंपरा थी। विश्वविद्यालय द्वारा इसकी तिलांजलि दे दिया गया है।

अब 20 से 25 छात्रों पर भी परीक्षा केंद्र बनाया जा रहा है। इस नीति से विश्वविद्यालय पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ रहा है। 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर ही परीक्षा केंद्र बनाए जाने के शासनादेश का भी उल्लंघन हो रहा है । चालीस किलोमीटर दूर तक छात्रों को परीक्षा केंद्र जाना पड़ रहा है।

केंद्रों पर प्राचार्य ना होने पर केंद्र न बनाने का शासनादेश का उल्लंघन हो रहा है। सब मिलाकर विश्वविद्यालय समस्त नियम शासनादेश को ताक पर रखकर परीक्षा नियंत्रक की मनमानी से चलाया जा रहा है।

जो विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही अहितकर है। शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री से इन बिंदुओं की किसी सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति से जांच कराकर दोषियों को दंडित करने की मांग किया है।

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