- बहुमत सिद्ध करने में फिर मात खाए ओली, बंटे हुए नजर आए मधेशी और एमाले के सांसद
यशोदा श्रीवास्तव
काठमांडू। शुक्रवार को देर रात तक सरकार बचाने को ओली का प्रयास काम नहीं आया और अंततः राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को दूसरी बार संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव की तिथि तय करनी पड़ी।इस बार मतदान की तारीख 12 और 19 नवंबर तय की गई है।
पिछले साल दिसंबर में संसद के बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका पर उच्च न्यायालय का संसद के पुनर्बहाली का फैसला न आया होता तो नेपाल में इसी महीने मध्यावधि चुनाव के लिए प्रचार चरम पर होता।
उच्च न्यायालय के निर्देश पर पुनर्बहाल की गई संसद में ओली की भी बहाली हुई लेकिन उन्हें विश्वास मत हासिल करने का भी निर्देश था।
विश्वास मत के लिए इसी महीने दस मई को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली संसद के एक दिवसीय सत्र में मात्र 93 सांसदों का समर्थन प्राप्त कर अपने विरोधियों से मात खा गए थे। ओली को अपदस्थ करने की ठाने विपक्ष को 124 मत हासिल हुए थे।
इस तरह ओली की कुर्सी चली गई थी। ओली के बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने ससद में सबसे बड़े दल,जो भी हो उसे सरकार बनाने के लिए तीन दिन में जरूरी बहुमत के साथ दावा पेश करने के लिए कहा।
संसद में62 सदस्यों के साथ बड़ा दल होने के नाते नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया लेकिन मधेशी दल के महंत ठाकुर गुट 26 सांसदो का समर्थन न मिलने के कारण तीन दिन तक चले रस्साकशी के बीच देउबा अंततः जरूरी बहुमत नहीं जुटा सके लिहाजा सत्ता गंवाने के ठीक चौथे दिन ओली प्रधानमंत्री की अपनी कुर्सी पर फिर वापस आ गए।
ओली को विश्वास मत हासिल करने के लिए राष्ट्रपति ने एक महीने का समय दिया था लेकिन या तो उन्हें यकीन था कि वे विश्वास मत हासिल कर लेंगे या फिर यह था कि किसी हाल में विश्वास मत नहीं हासिल होगा तो ऐसी स्थिति में एक महीने का क्या इंतजार, जो हो,वह अभी ही हो जाय।
शायद यही वह वजह रही कि ओली ने महीना बीतने के पहले ही शुक्रवार यानी 21 मई को जरूरी बहुमत की सूची राष्ट्रपति को भेज दी।
सूची में शामिल मधेशी दल के 12 और एमाले यानी ओली की पार्टी के 26 सांसदों ने नेपाली कांग्रेस पक्ष में अपना समर्थन व्यक्त किया।लिहाजा बहुमत का जादुई आंकड़ा गड़बड़ा गया।
इस आंकड़ेबाजी में माथापच्ची करने के बजाय राष्ट्रपति ने एक बार फिर संसद भंगकर मध्यावधि चुनाव का ऐलान कर दिया। इस प्रक्रिया में जिस तरह जल्द बाजी की
गई उससे ऐसा लगता है कि इस बार के मध्यावधि चुनाव की घोषणा के पीछे भी ओली और राष्ट्रपति की पूर्व निर्धारित सहमति रही।
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को विश्वासमत हासिल करने के लिए 275 में से मौजूद 271सदस्यीय संसद में उन्हें 136 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी।
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संभावना थी कि मधेशी दलों के सांसद ओली के समर्थन में आ सकते हैं। 10 मई के ओली के खिलाफ विश्वास मत और 21 मई को ओली के पक्ष में विश्वास मत के दौरान मधेशी दल और खुद ओली गुट के असंतुष्ट सांहद बंटे हुए दिखे। मधेशी दल के 12 सदस्य उपेंद्र यादव के साथ थे तो 22 सांसद महंत ठाकुर के साथ थे।
इसी तरह ओली गुट के 26 सांसद जिसे पूर्व पीएम माधव नेपाल गुट का माना जाता है, ये भी ओली के खिलाफ थे।दोनों दलों के 38 सांसद नेपाली कांग्रेस के साथ खड़े नजर आए।
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बता दें कि मधेशी दलों का एक मोर्चा है जनता समाज पार्टी जिसके अध्यक्ष महंत ठाकुर हैं और एमाले के अध्यक्ष स्वयं ओली हैं।दोनों ने व्हिप का उलंघन कर विरोध में खड़े हुए अपने अपने सांसदों की सदस्यता रद कर शेष सांसदो की गणना के आधार पर विश्वास मत पर फैसला लेने की अपील राष्ट्रपति से की।
राष्ट्रपति इस गुणागणित के पचड़े में पड़ने की अपेक्षा संसद बर्खास्त कर मध्यावधि चुनाव का विकल्प बेहतर समझा। कोरोना की वजह से पिछले एक साल से आर्थिक संकट का सामना कर रहे नेपाल पर मध्यावधि चुनाव का बोझ सहन कर पाना आसान नहीं होगा। मध्यावधि चुनाव में जनता इसके लिए किसे जिम्मेदार मानकर वोट करेगी ,यह भी देखने वाली बात होगी?