Tuesday - 29 October 2024 - 12:31 AM

140 सालों से दूल्हों को नहीं मिली दुल्हन, वापस लौटी बारात, जानिए क्या है जौनपुर का कजरी मेला

जुबिली न्यूज डेस्क

हर जगह की अपनी कुछ खास परम्परा होती है। जिसे लोग शदियों तक निभाते है। आज हम यूपी के एक ऐसे ही परम्परा के बारे में आपको बताने जा रहे है जिसे जानकर आपको भी हैरानी होगी। बता दे उत्तर प्रदेश के जौनपुर में पिछले 140 साल से एक ऐसी परम्परा निभाई जा रही है। जहां दो गांवों से आई बारात इस साल भी बिना दुल्हन के ही बैरंग वापस लौट गई। दोनों गांव से हाथी-घोड़े पर सवार होकर बैंड-बाजा लेकर नाचते-गाते बारातियों के साथ निकलके दूल्हों को मायूसी ही हाथ लगी और दोनों गांव वाले जाते हुए अगले साल आज ही के दिन दोबारा बारात लाने की चेतावनी देकर लौट गए।

140 सालों से चली आ रही है परंपरा

आपको बता दें कि यह परंपरा तकरीबन 140 साल से ऐसे ही चली आ रही है। इसे कजरी के दिन निभाया जाता है। परंपरा के मुताबित इस दिन पड़ोस के दो गांव में लड़किया जरई बोने तालाब में गई थी।इस दौरान दोनों के बीच कजरी गीत गाने का कंपटीशन शुरू हो गया और देखते ही देखते रात हो गई। इस कंपटीशन का सुबह तक कोई विजेता नहीं हुआ और मामला बराबरी पर छूटा। इसके बाद गांव के नवाब ने सुबह जाते हुए लड़कियों को विदाई के तौर पर कपड़ा दिया जिसके बाद से ये परंपरा चली आ रही हैं। गांव के लोगों का कहना है कि उनके जन्म से पहले से ये परंपरा चली आ रही है।

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दोनों छोर के बाराती शादी के लिए ललकारते हैं

हर साल इसी तरह मेला आयोजित होता है। मेले से पहले कजगांव में जगह-जगह मंडप बनाए जाते हैं। वहीं घर घर महिलाएं शादी के गीत गाती हैं। रजोपुर में भी ऐसा ही होता है। वहां भी मंडप बंधता है। मंगल गीत होते हैं। मेले के दिन  बारात ऐसे निकलती है जैसे आम तौर पर शादी के लिए बारात निकलती है। बारात गाजे-बाजे के साथ पोखरे तक पहुंचती है। दोनों छोर के बाराती शादी के लिए ललकारते हैं और फिर सूर्यास्त के साथ ही शादी हुए बिना ही बारात वापस चली जाती है। 140 साल से ये परंपरा मनाई जा रही है।

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