न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी सऊदी अरामको पर ड्रोन हमले के बाद वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की सप्लाई पर 5 फीसदी तक की कमी होने वाली है। इस हमले के बाद अब एक बार फिर पर्शियन गल्फ क्षेत्र समेत भारत के लिए चिंता बढ़ गई है।
कच्चे तेल के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ आयातक देश है और इस ड्रोन हमले के बाद की स्थिति पर पैनी नजर बनाए हुए है। इस हमले के बाद सऊदी अरामको को विश्वास है कि वो जल्द ही रिकवर कर लेगा लेकिन इस बीच दुनिया भर के प्रमुख आयातकों को कच्चे तेल की कमी से जूझना पड़ सकता है।
ऑयल प्राइस डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले के बाद प्रतिमाह 150 MM बैरल कच्चे तेल की कमी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि ऐसा होता है तो इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती हैं।
यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा इस हमले की जिम्मेदारी लेने के बाद अब दुनियाभर के ट्रेडर्स भी इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि कच्चे तेल का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकता है।
अमरीका ने ईरान को बताया जिम्मेदार
अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने सऊदी अरब के तेल क्षेत्र में ड्रोन हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है, जिससे देश की तेल क्षमता का लगभग आधा हिस्सा या दैनिक वैश्विक तेल आपूर्ति का 5 फीसदी बाधित हुआ है। हमले के बाद, पोंपियो ने ट्वीट कर कहा, “सऊदी अरब पर करीब 100 हमलों के पीछे तेहरान का हाथ है जबकि राष्ट्रपति हसन रूहानी और विदेश मंत्री मोहम्मद जावद जरीफ कूटनीति में शामिल होने का दिखावा करते हैं। तनाव कम करने के आह्वान के बीच ईरान ने अब दुनिया की ऊर्जा आपूर्ति पर जबरदस्त हमला किया है।
भारत के आयात बिल पर असर
गौरतलब है कि भारत में कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए सऊदी अरब महत्वपूर्ण सोर्स है। भारत के लिए सऊदी अरब कच्चे तेल और कुकिंग गैस का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का असर भारत पर भी पड़ेगा। कीमतों में तेजी से भारत के तेल आयात बिल के साथ- साथ राजकोषीय घाटे पर भी बुरा असर पड़ने वाला है।
कच्चे तेल की कीमतों में प्रति डॉलर के इजाफे से सालाना आधार पर भारत के आयात बिल पर 10,700 रुपए का असर पड़ेगा। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत ने अपने कच्चे तेल के आयात पर करीब 111.9 अरब डॉलर खर्च किया था।
मोदी सरकार के लिए बढ़ी चिंता
नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के लिए भी चिंता बढ़ गई है। आर्थिक सुस्ती, वैश्विक मंदी का डर और ट्रेड वॉर को लेकर अनिश्चितता की स्थिति के बीच कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से घरेलू बाजार में ग्राहकों पर बुरा असर पड़ सकता है।
जुलाई 2009 में कच्चे तेल की कीमते 147 डॉलर प्रति बैरल के उच्च्तम स्तर पर थीं। इंडियन ऑयल द्वारा प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस दौरान घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमतें करीब 48 रुपए प्रति लीटर और डीजल की कीमत करीब 35 रुपए प्रति लीटर के आसपास थीं।
आधा हो गया तेल उत्पादन
सऊदी अरब और अमेरिका ने इस हमले के लिए तेहरान समर्थित हाउती विद्रोहियों को जिम्मेदार ठहराया और ईरान को अंजाम भुगतने की चेतावनी दी है। हालांकि ईरान ने ऐसे किसी भी आरोप से इनकार किया है। सऊदी अरब के इन प्लांट पर हमले के बाद यहां का उत्पादन आधा हो गया है।
सोमवार को कच्चे तेल की कीमतें 19 फीसदी बढ़कर 71.95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने का सीधा असर भारतीय बाजार पर भी होगा। यहां भी पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम में बढ़ोतरी हो सकती है।