न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। ‘सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं, लोग जाते हैं, हम यहां पे खड़े रह जाते हैं!’ कुलियों का जिक्र होते ही कुली फिल्म का यह गाना बरबस याद आ जाता है। आज देशभर में लॉकडाउन के बाद कुलियों के सामने परिवार पालना मुश्किल हो गया है।
मेहनतकश कुली का यही जीवन है। खून-पसीना बहाकर हर कुली रोज तीन से चार सौ रुपये कमा लेता था, लेकिन जब से कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए लॉकडाउन लगा है, ट्रेनों की आवाजाही बंद है, तब से कुली और उनका कुनबा संकट में है।
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रोज कमाने-खाने वाले कुलियों के पास न तो दवा के लिए पैसे हैं और न ही रोटी के लिए। उन्हें अपने घर का बोझ उठाने के लिए अपने सगे-संबंधियों से कर्ज लेना पड़ रहा है। कुलियों की मदद रेलवे प्रशासन भी नहीं कर रहा है। कुलियों का कहना है कि इस दौरान रेलवे प्रशासन को हमारी मदद करनी चाहिए, लेकिन कोई नहीं सुन रहा है।
तमाम वादों व कवायदों के बावजूद सरकार की तरफ से कुलियों को कोई मदद नहीं मिल सकी है। दो महीने से खाली बैठे कुली अब अपने हक की लड़ाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। देशभर के कुली संगठनों ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई बैठक में यह निर्णय लिया है।
ऑल इंडिया कुली संघ के अध्यक्ष राम सुरेश यादव के अनुसार लॉकडाउन के दो महीने से भी ज्यादा समय से कुलियों के पास काम नहीं है। रोज कमाकर परिवार का पेट पालने वाले कुलियों को सरकार से कोई मदद नहीं मिली है।
इस समस्या को लेकर देशभर के 68 मंडलों के कुली संगठनों ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए निर्णय लिया है। 19,762 कुलियों के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
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