जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में मुलायम परिवार एक अलग पहचान रखता है। हालांकि बीच में शिवपाल यादव के अलग होनेे से मुलायम परिवार बिखरा हुआ नजर आ रहा था लेकिन मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद एक बार फिर पूरा परिवार एक हो गया है।
शिवपाल यादव ने तय कर लिया है कि अब वो अपने भतीजे अखिलेश के साथ ही रहेंगे और समाजवादी पार्टी को मजबूत करेंगे। शिवपाल यादव ने मैनपुरी में डिपल यादव को जीताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उधर बीजेपी को ये एहसास हो गया था कि उसके लिए मैनपुरी जीतना उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
इस वजह से पूरी सरकार यहां पर आ गई और बीजेपी ने मैनपुरी के चुनावी इतिहास में इतना जबरदस्त तरीके से प्रचार कभी नहीं किया था। इसके बावजूद उसको हार का मुंह देखना पड़ा।
केशव प्रसाद मौर्य तो बकायदा डेरा जमाए हुए थे और रघुराज को जीताने के लिए पूरा जोर लगा रहे थे। सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों पर बीजेपी का दबदबा देखने को मिल चुका है लेकिन मैनपुरी में ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी लगातर इस सीट पर अपनी दावेदारी को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हर वो काम किया है जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। इतना ही नहीं अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव के साथ भी अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए थे और उनको साथ कर लिया।
डिंपल यादव को जीताने के लिए शिवपाल यादव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और घर-घर जाकर वोट मांगा। शिवपाल यादव और उनके बेटे आदित्य यादव ने जसवंतनगर, करहल और मैनपुरी क्षेत्र में गांव-गांव डिंपल के लिए वोट मांगते नजर आए।
इसके बाद जैसे ही चुनाव में जीत मिली उसके के फौरन बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा का विलय भी करा दिया। ऐसे में बरसों से चली आ रही है अदावत पल भर में खत्म हो गई।
अखिलेश और शिवपाल के बीच 2016 में रिश्तों में दरार आई। शिवपाल ने सपा से अलग होकर 2018 में अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली लेकिन अब दोनों एक हो गए है जो आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं। कल तब शिवपाल के बहाने सपा को कमजोर करने में लगी थी लेकिन अब उसके लिए दोहरी चुनौती है।