शबाहत हुसैन विजेता
बंगाल में जहाज़ डूब रहा है. डूबते जहाज़ को छोड़कर चूहे तेज़ी से भाग रहे हैं. जिन ताकतों के भरोसे यह डूबता जहाज़ अपने शानदार सफ़र के ख़्वाब देखा करता था वह जहाज़ की हिफाजत का काम छोड़कर इन चूहों को आसरा देने में जुट गई हैं. वह ताकतें चाहती हैं कि जहाज़ पूरी तरह से डूब जाए मगर चूहे उसकी कश्ती के खेवनहार बन जाएं.
वक्त सबका बदलता है. वक्त कभी एक सा नहीं रहता. जो सूरज बड़े गुरूर के साथ अँधेरे की चादर फाड़कर सुबह-सुबह आसमान पर छा जाता है और कोई भी उससे आँख मिलाने की जुर्रत नहीं कर पाता, उस ताकतवर सूरज को भी शाम को डूबना पड़ता है. दिन-भर की जद्दोजहद के बाद वही अँधेरा रात को सूरज को हराकर समंदर में डुबो देता है.
डूब जाने की सच्चाई सब जानते हैं मगर मोहब्बत उन्हीं चूहों से की जाती है जो डूबते जहाज़ को सबसे पहले छोड़कर भागते हैं.
मुल्क भी एक जहाज़ की तरह होता है. यह जहाज़ हौंसलों से चलता है. यह जहाज़ अपने कैप्टन पर यकीन से चलता है. यह जहाज़ एक दूसरे का ख्याल रखने और एक दूसरे की हिफ़ाज़त से चलता है. इस जहाज़ को चलाने के लिए वादों की नहीं ज़िम्मेदारी की ज़रूरत होती है. इस जहाज़ को चलाने के लिए मालिक की नहीं ड्राइवर की ज़रूरत होती है. ड्राइवर जब खुद को मालिक समझकर फैसला करने लगता है तो जहाज़ अपने सफ़र से भटक भी जाता है.
ड्राइवर की नासमझी ने मुल्क के जहाज़ को फिर भटका दिया है. इस राह भटकते जहाज़ को अच्छी तरह से चलाने के लिए दो मशीनरी तैयार की गई थीं. पहली डेमोक्रेसी और दूसरा कान्स्टीट्यूशन. इन दोनों के बीच बैलेंस बनाये रखना जहाज़ के कैप्टन की ज़िम्मेदारी होती है. बैलेंस जब भी बिगड़ता है तब नुक्सान ही होता है.
इमरजेंसी के दिन याद हैं ना. उस दौर के कैप्टन ने भी खुद को जहाज़ का मालिक समझ लिया था. उस कैप्टन को भी सूरज जैसा गुरूर हो गया था. उस कैप्टन को भी यही लगता था कि उसका कोई सब्स्टीटयूट नहीं है. उसे लगता था कि उसके अलावा कोई है ही नहीं जो इस मुल्क के जहाज़ को चलाने का हुनर जानता हो. वक्त ने उस कैप्टन को समझा दिया कि तुम सिर्फ ड्राइवर थे. तुम अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा सके, अब हटो.
नया कैप्टन भी इसी गुरूर में है. जहाज़ पर सवार लोगों को लगातार यह धमकाया जा रहा है कि जैसा मैं कहूं, वैसे चलो वर्ना जहाज़ को डुबो दूंगा. यह बताया जा रहा है कि मेरा कोई सब्स्टीटयूट नहीं है लिहाज़ा मुझे मेरे हिसाब से जहाज़ चलाने दो. वह जहाज़ की हर सवारी को एक ख़ास रंग में रंगने को आमादा है. वह इस जहाज़ की उस ख़ूबसूरती को बदलना चाहता है जिसमें तमाम रंगों के फूल खिलते हैं. हर फूल दूसरे फूल की ख़ूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है.
इस कैप्टन को इस बात की परवाह नहीं है कि सवारियों में उसे लेकर नाराजगी बढ़ रही है. उसे इस बात की परवाह नहीं है कि अलग-अलग मुद्दों को लेकर अलग-अलग जगह पर हालात इस तरह से बिगड़ रहे हैं कि जहाज की पालिश खराब हो रही है. कैप्टन इन खराब हालात में भी नौसखिये की तरह जहाज़ को दौड़ाने में लगा है और उसका कंडक्टर सवारियों को धमकाने में लगा है कि जैसे कहता हूँ वैसे बैठे रहो वर्ना डुबो दूंगा.
कैप्टन और कंडक्टर की जिद ने जहाज़ की कैटरिंग का इंतजाम बिगाड़ दिया है. जो कैटरिंग का इंतजाम करता था वह अपना काम छोड़कर मुंह फुलाकर नाराज़ बैठ गया है. कैटरिंग का इंतजाम करने वाले को नए कान्ट्रेक्ट करने को मजबूर किया जा रहा है जबकि कैटरिंग वाला चाहता है कि पुराने ट्रैक को ही बरकरार रखा जाए. नया ट्रैक ठीक नहीं है.
कैप्टन और कंडक्टर जहाज़ के स्कूलों में भी इंटरफेयर कर रहा है. इस लैंग्वेज को पढ़ो, इसको मत पढ़ो की ज़िद का माहौल है. यह जहाज़ जिस शख्स को जहाज़ का बाप मानता रहा है उसके कातिल को अहमियत देने की कोशिशें चल रही हैं. जहाज़ पर सवार कैप्टन और कंडक्टर के कुछ ख़ास लोग अपने मालिक की गलतियों पर भी तालियाँ बजा रहे हैं.
कैप्टन और कंडक्टर पूरे जहाज़ पर अपना झंडा देखने को बेकरार हैं. जहाज़ के जिस इलाके में भी इंतजाम संभालने वाले इलेक्शन को खड़े होते हैं वहां हालात ऐसे बनाए जाएँ कि वहां भी सिर्फ वही फूल खिलें जो हम चाहते हैं, जिसे हम पसंद करते हैं.
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : ब्रिटिश हुकूमत भी मानती थी वही नेताजी थे
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : इकाना से सीमान्त गांधी तक जारी है अटल सियासत
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : दिल्ली के फुटपाथ पर सो रहा है आख़री मुग़ल बादशाह का टीचर
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : बजरंग दल की अदालत और सरकार की पुलिस
बंगाल में रंग बदलने की तैयारियां चल रही हैं. जहाज़ को डुबाने की कोशिशें तेज़ हैं. जहाज़ छोड़कर भागते चूहों को शेल्टर देने का काम चल रहा है. जब भी मुल्क की डिजाइनिंग के बारे में सोचता हूँ. डेमोक्रेसी और कान्स्टीट्यूशन नाम की मशीनरी के बारे में सोचता हूँ. इनकी बेहुरमती की तरफ ध्यान जाता है तब इमरजेंसी याद आती है. तब महसूस होता है कि वक्त फिर करवट बदल रहा है. जो चूहे इमरजेंसी में भागकर किसी की गोद में छुपे थे वह अब फिर से भागने लगे हैं. फिर से नए ठिकाने की तलाश में लग गए हैं, क्योंकि चूहे मालिक की नहीं अपनी हिफाजत को सबसे ज़रूरी समझते हैं.