शबाहत हुसैन विजेता
पश्चिम बंगाल में ममता बनार्जी ने उपचुनाव में बड़े अंतर से जीत दर्ज कर सारी चुनौतियों को खत्म कर दिया. ममता को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उपचुनाव लड़ना पड़ रहा था तो बीजेपी के सामने एक आस बची थी कि अगर किसी भी तरह से उपचुनाव में ममता बनर्जी को हरा दिया जाए तो यह सिर्फ एक विधानसभा सीट की हार नहीं होगी बल्कि ममता की पूरी सल्तनत भरभरा कर ढह जायेगी.
आम चुनाव की तरह से ममता बनर्जी उपचुनाव में भी बीजेपी को लेकर एग्रेसिव थीं. वह बढ़-बढ़ कर हमले कर रही थीं. बीजेपी के सामने ममता बनर्जी सिर्फ इसी वजह से टिक पाती हैं क्योंकि वह भी अपना सियासी खेल वैसे ही खेलती हैं जैसे बीजेपी खेलती है. बीजेपी का विपक्ष को पस्त कर देने का सबसे बड़ा राज़ यही है कि वह खुद विपक्ष को वह मुद्दा मुहैया कराती है जिस पर विपक्ष को खेलना होता है. विपक्ष तेज़ी से आगे बढ़कर वह मुद्दा लपक लेता है और पहले ही दिन से बीजेपी का शिकार बन जाता है. आगे बीजेपी जैसे-जैसे चाहती है चुनाव का रुख उसी तरफ घूमता चला जाता है लेकिन ममता बनर्जी देश में अकेली ऐसी महिला नेता हैं जो खेला होबे और का..का..छी-छी जैसे नारे गढ़कर अपनी जीत की इबारत लिख डालती हैं.
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान ही केन्द्र की राजनीति में अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर कर दी थी. ज़ाहिर है कि अगला लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. ममता पूरे देश में घूमेंगी और सियासत के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए अपने खुद के मानक तैयार करेंगी. वह डरती नहीं हैं, बढ़-बढ़कर हमले करती हैं और सामने वाले को परास्त कर देने का हुनर जानती हैं.
ममता के इस हुनर का राज़ उनकी सादगी है. उनकी सूती साड़ी और मामूली चप्पल है. मीलों पैदल चलने की ताकत है. ममता केन्द्र सरकार जैसी बड़ी ताकत से डरती नहीं हैं क्योंकि उन्हें ईडी और सीबीआई का डर नहीं है. उन्हें बेईमानी के किसी मामले में फंस जाने का डर नहीं है. बाकी सियासी पार्टियाँ डरती हैं क्योंकि जिसका भी मुंह खुलता है उसकी फ़ाइल सीबीआई दफ्तर में खुल जाती है. जो बराबरी करने की कोशिश करती है उसके दरवाज़े की कुंडी ईडी बजाने लगती है.
बीजेपी के पास यह हुनर है कि वह अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखती है. खुद की लिखी स्क्रिप्ट को इतना वायरल करती है कि वह सच लगने लगती है. बीजेपी जब चाहती है जिसे चाहती है उसे अपने हिसाब से नाचने को मजबूर कर देती है. किसी को टोटी चोर बना देती है तो किसी को एसी चोर करार दे देती है. लोग फ़ौरन मान लेते हैं क्योंकि न किसी ने टोटी लगाते देखा था न किसी ने निकालते देखा था. सुनने वाले फ़ौरन इल्जाम को सही मान लेते हैं क्योंकि उन्होंने देखा कुछ नहीं है लेकिन इल्जाम हर तरफ तैर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत के बाद कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो अब पंख फडफडाएंगे. आम चुनाव हुआ था तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा पर हमला हुआ था और उपचुनाव हुआ तो बीजेपी के उपाध्यक्ष पर हमला हुआ. बीजेपी का इल्जाम है कि टीएमसी ने उसे चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया. हो सकता है कि यह इल्जाम सही भी हो.
ममता बनर्जी की पार्टी पर लगा यह इल्जाम कि बीजेपी को प्रचार करने से रोका गया सही हो सकता है क्योंकि यह सत्ता का चरित्र है. जहाँ जिसकी सत्ता होती है वहां वह दुरूपयोग करता है. उत्तर प्रदेश के हाल में हुए पंचायत चुनाव याद हों तो उसमें भी तो यही हुआ था. सरकारी मशीनरी ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को पर्चा तक नहीं भरने दिया था. जब कोई नामांकन ही नहीं कर पाएगा तो वह चुनाव क्या लड़ेगा. चुनाव वही जीतेगा जो लड़ेगा. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी का प्रस्तावक बनने पर यूपी सरकार ने प्रस्तावक के घर पर बुल्डोजर भेज दिया था. प्रस्तावक के घर जाने वाली सड़क तोड़ दी थी. मन्दिर की सियासत करने वाली सरकार ने प्रस्तावक के घर के बाहर बने मन्दिर को ढहा दिया था.
पंचायत चुनाव के दौरान महिला नेता की बीच सड़क पर साड़ी उतार दी थी. एक आईपीएस अफसर के मुंह पर सत्ता पक्ष के नेता ने तमाचा जड़ दिया था. सत्ता को एन-केन-प्रकारेण जीत चाहिए थी वह उसने हासिल कर ली.
दूसरी पार्टी को नामांकन नहीं करने देंगे, नामांकन हो गया तो उसे प्रचार नहीं करने देंगे. उसने सत्ता को चुनौती दे दी तो सत्ता के पास पुलिस है. क़ानून की ढेर सारी धाराएं हैं. जेल भेजने के बहुत सारे बहाने हैं.
बंगाल में टीएमसी की सरकार में जो हो रहा है वही उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार में भी हो रहा है. वही महाराष्ट्र की शिवसेना-कांग्रेस गठबंधन की सरकार में भी हो रहा है. यह मामला टीएमसी, बीजेपी, शिवसेना, कांग्रेस और ऍम आदमी पार्टी का नहीं है. सच बात यह है कि यह तो सत्ता का चरित्र है. जिसे सत्ता मिल जाती है उसका चरित्र वैसा ही हो जाता है. सियासत में चरित्र जीत और हार से तय होता है. जीत जाने के बाद नैतिकता की किताब बंद कर दी जाती है. वह किया जाता है जो सत्ता चाहती है.
सियासत में सत्ता का चरित्र सिर्फ इस वजह से बदचलन हो जाता है क्योंकि उस पर नज़र रखने वाला वाच डॉग मर चुका है. बड़े कारपोरेट घरानों ने मीडिया को तलवे चाटने वाला बना दिया है. बड़ी सियासी पार्टियाँ जिन कारपोरेट घरानों से पैसा लेकर चुनाव लड़ती हैं उन्हीं के इशारों पर मीडिया का चरित्र तय होता है.
पिछले कुछ सालों में मीडिया का चरित्र जितना गिरा है कभी नहीं गिरा था. सियासी विचारधाराओं के मीडिया घराने तैयार हो गए हैं. मीडिया का काम सत्ता की चापलूसी के सिवाय कुछ नहीं रह गया है. अभी हाल में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अमरीकी यात्रा पर गए थे. अमरीका से लौटते ही प्रधानमंत्री निर्माणाधीन संसद भवन देखने चले गए तो एक बड़े चैनल की एंकर ने ट्वीट किया कि बेचारे प्रधानमंत्री ने आराम तक नहीं किया आते ही काम पर लग गए.
इसी तरह अभी हाल में सरकार के करीबी माने जाने वाले उद्योगपति अडानी के पोर्ट पर 22 हज़ार करोड़ की ड्रग्स बरामद हुई. यह खबर प्रमुख खबर नहीं बन पाई क्योंकि सरकार नहीं चाहती थी. फिल्म अभिनेता शाहरुख खान और शक्ति कपूर के बेटों को ड्रग्स पीते हुए पकड़ा गया तो वह प्रमुख खबर की शक्ल में सामने आ गई.
सत्ता का चरित्र बदलने के लिए मीडिया की कमान गैर बिकाऊ हाथों में होनी चाहिए. मीडिया अगर सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं रखता है तो आने वाले दिनों मीडिया का स्वरूप और भी बदतर हो जाएगा. अभी तो थोड़ी बहुत खबरें कहीं-कहीं दिख भी जाती हैं इसके बाद तो विकास की खबर छपेगी. हत्याओं की खबरों पर रोक होगी. मीडिया के कत्ल की तैयारी है. इस कत्ल के बाद के हालात पर कोई चर्चा करने वाला भी नहीं होगा.
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