न्यूज डेस्क
‘हमारे पास जुर्म स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसा इसलिए नहीं था कि हम दोषी थे बल्कि हमें कोई अंदाजा नहीं था कि हमारा केस कब खत्म होगा। हमें अपने परिवार की देखभाल करनी थी। हालात बिगड़ते जा रहे थे।’
यह बयान सात साल जेल की सजा काटने के बाद इस महीने जमानत पर रिहा होने वाले मोहम्मद इरफान गौस का है। गौस उन पांच लोगों में शामिल हैं जो लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) आतंकी होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे और दो साल पहले मुंबई की अदालत में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था।
तलोजा जेल से छूटने के बाद गौस नेे दावा किया है कि वह निर्दोष थे और लंबी सुनवाई से बचने और अपने परिवार को खराब होती आर्थिक स्थिति से बचाने के लिए उन्होंने जुर्म स्वीकार कर लिया था।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पिछले हफ्ते गौस को जमानत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, ‘प्रथम दृष्टया, इस स्तर पर हमारा विचार है कि हमारे सामने जो सबूत उपलब्ध कराए गए हैं, वे इस बात का पर्याप्त आधार नहीं पेश करते हैं कि अपीलकर्ता/आरोपी नंबर 4 (गौस) के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हैं।’
गौरतलब है कि महाराष्ट्र एटीएस ने गौस सहित पांचों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम, आईपीसी और शस्त्र अधिनियम के तहत दण्डनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दाखिल किया था। साल 2013 में यह मामला एनआईए को ट्रांसफर किया गया था।
क्या कहा गौस ने
32 वर्षीय मोहम्मद इरफान गौस ने कहा, ‘एनआईए ने हमसे कहा कि बेंगलूरू में इसी तरह के आरोप में कुछ आरोपियों ने एक विशेष अदालत के सामने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और उन्हें पांच साल जेल की सजा मिली। एनआईए ने सुझाव दिया कि हम जुर्म स्वीकार करने के बारे में विचार करें।’
उन्होंने कहा, ‘हमने जुर्म स्वीकार करने का फैसला किया और एनआईए से अनुरोध किया कि वह अदालत से हमें पांच साल की सजा देने का निवेदन करे क्योंकि वह समय हम पहले ही जेल में बिता चुके हैं।’
हालांकि एनआईए के लिए अदालत में पेश होने वाले वकील एएम चिमलकर ने यह कहते हुए गौस की जमानत अर्जी का विरोध किया था कि उनके खिलाफ सबूत के तौर पर महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।
एक रिवॉल्वर और जिंदा कारतूस के साथ पकड़े गए आरोपी
अभियोजन के अनुसार, ‘गौस और एक अन्य आरोपी मुजम्मिल ने एक दूसरे को 10 अक्टूबर, 2011 और 9 अगस्त, 2012 के बीच 214 फोन कॉल किए। इसके साथ ही कथित तौर गौस ने मुजम्मिल के साथ मुंबई से नांदेड़ तक का सफर किया।’
अभियोजना का दावा है कि उनमें से एक ने सऊदी अरब से पैसे मिले जिसे एक अन्य आरोपी ने भेजा था। ऐसा आरोप है कि आरोपी एक रिवॉल्वर और जिंदा कारतूस के साथ पकड़े गए और उनकी योजना मुस्लिम युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने की थी।
वहीं नवंबर, 2017 में पांचों ने ट्रायल कोर्ट के सामने जुर्म कबूल करने का अनुरोध किया। हालांकि, अदालत ने उनका अनुरोध खारिज कर दिया।
उस समय गौस की जमानत याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था, ‘मामले की सुनवाई आठ महीने के भीतर हर हालत में जितनी जल्दी हो सके की जाए।’
हालांकि, गौस ने कहा था, ‘आठ महीने में केवल तीन गवाहों का परीक्षण किया गया और मामला अभी भी इस स्तर पर है कि जांच अधिकारी को आखिरी गवाह से पूछताछ करनी है।’
गौस ने कहा कि साल 2012 में गिरफ्तार होने से पहले वे अपनी इनवर्टर बैटरी की दुकान पर काम कर रहे थे।