- मंत्रालय के विभाग को लेकर आपस में लड़ रहे मधेशी दल
यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल में ओली के संसद भंग करने के फैसले के खिलाफ न्यायालय के फैसले के बाद ओली के विश्वास मत को लेकर पेंच फंस गया है।
उनके सहयोगी प्रचंड की नाराजगी के बाद यह स्थिति उतपन्न हुई है। प्रचंड ने ओली सरकार से अलग होने का ऐलान अभी नहीं किया है लेकिन विश्वास मत में प्रचंड गुट के समर्थन पर संशय है।
बता दें कि सत्ता को लेकर ओली और प्रचंड के बीच मचे घमासान के बाद नेपाल फिर एक बार राजनीतिक अस्थिरता के मुहाने पर है।
दोनों के बीच घमासान का नतीजा था कि ओली को बीच में ही सरकार भंगकर मध्यवाधि चुनाव जैसा नेपाल घाती कदम उठाना पड़ा। वह तो उच्च न्यायालय का शुक्रिया करें कि उसने ओली के फैसले के खिलाफ फैसला दिया।
अब ओली को सरकार में बने रहने के लिए उन्हें विश्वास मत के दौर से गुजरना है। इसके लिए वे पिछले एक सप्ताह से कोशिश में हैं।
ओली सरकार बचे रहने के लिए बस दो संभावनाएं हैं। पहला वे मधेसी दलों के करीब 36 सांसदों का समर्थन हासिल करें या फिर नेपाली कांग्रेस के भी करीब इतने ही सांसदों को साथ लाएं।
खबर है कि ओली के रणनीति कारों की मधेशी नेताओं उपेंद्र यादव,महंत ठाकुर तथा राजेंद्र महतो से बात हो चुकी है जिसमें मधेश दलों को दस मंत्रालय की पेशकश की गई है।
मंत्रालयों को लेकर मधेश नेता ही आपस में लड़ रहे हैं। वे यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि दस मंत्रालयों का बंटवारा कैसे करें।इनमें मंत्रालय के विभाग को लेकर रस्साकसी चल रही है।
इस बीच ओली के रणनीतिकार नेपाली कांग्रेस से भी संपर्क बनाए हुए है।नेपाली कांग्रेस यद्यपि कि ओली को समर्थन देने को बहुत इच्छुक नहीं है लेकिन प्रचंड के सरकार बनाने के प्रयास को लेकर भी उत्सुक नहीं है।
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नेपाली कांग्रेस के समर्थन से यदि प्रचंड अपनी सरकार बनाने की सोच रहे हों तो इसके लिए नेपाली कांग्रेस को सौ बार सोचना होगा।
2017 में आम चुनाव के ऐन वक्त प्रचंड का नेपाली कांग्रेस का साथ छोड़ना अभी भूला नहीं है। ऐसी स्थिति में दो संभावनाएं दिखती है।
एक ओली के अलावा उनके ही दल के माधव नेपाल या बामदेव गौतम सरकार का नेतृत्व करने को आगे आएं तो प्रचंड और नेपाली कांग्रेस नई सरकार का समर्थन करने को राजी हो सकते हैं या फिर प्रचंड आगे बढ़कर नेपाली कांग्रेस को सरकार बनाने की पेशकश करें।
फिलहाल उच्च न्यायालय ने ओली के सरकार भंग करने के फैसले पर जरूर ब्रेक लगा दिया लेकिन ओली अपनी सरकार बचा पाएंगे या किसी और की सरकार बनेगी, इसपर से ग्रहण छंटना अभी बाकी है।