पॉलीटिकल डेस्क
तेलांगाना के 17 लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है। किस पार्टी का पलड़ा भारी है यह तो 23 मई को परिणाम आने के बाद पता चलेगा, लेकिन 2014 के लोकसभा और 2018 के विधानसभा चुनावों के तुलनात्मक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि टीआरएस का पलड़ा भारी है।
टीआरएस अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। मैदान में टीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी है। टीडीपी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वह तेलांगाना चुनाव में दूर रहेगी। बीजेपी कुछ ही सीटों पर चुनौती देने की स्थिति में है।
मुख्य रूप से दो सीटों पर सीधे टीआरएस प्रत्याशी को चुनौती दे रही है। बाकी सीटों टीआरएस मजबूत स्थिति में है और कांग्रेस से उसे चुनौती मिल रही है।
प्रदेश में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के पक्ष में हवा है। इसी के सहारे टीआरएस प्रत्याशी अपनी जीत की आस में हैं। निजामाबाद सीट की बात करें तो यहां से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता मैदान में है। वह यहां से वर्तमान सांसद भी हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस की मधु याक्षी गौड़ हैं, जो यहां से 2004 और 2009 में सांसद रह चुकी हैं।
कविता को असली चुनौती 178 किसानों से मिल रही है। इन किसानों ने न सिर्फ अपना नामांकन कराया है बल्कि जमकर प्रचार भी किए हैं। कविता अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। उन्हें किसानों पर भरोसा है।
टीआरएस के हौसले बुलंद
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में टीआरएस को पूर्ण बहुमत मिला था। इसलिए टीआरएस के हौसले बुलंद है। आंकड़ों की बाजीगरी को समझे तो भी टीआरएस आगे है।
सत्तारूढ़ दल द्वारा मतदान किए गए वोट 1.43 लाख से 4.29 लाख हो गए हैं। कांग्रेस को मिले वोटों में मामूली 1.83 लाख से 2.04 लाख की वृद्धि हुई है। हालांकि, भाजपा के वोट 2014 में 4.38 लाख से घटकर 2018 में 1.72 लाख हो गए।
दो सीटों पर लड़ती दिख रही बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी पूरे तेलांगाना में महबूब नगर और सिकंदराबाद पर लड़ती हुई दिखाई दे रही है। सिंकदराबाद में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष जी किशन रेड्डी मैदान में हैं, तो महबूबनगर में तीन बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक रही डीके अरूणा।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे भाजपा में शामिल हुई हैं। उनका मुकाबला टीआरएस के श्रीनिवास रेड्डी से है जिन्हें निवर्तमान सांसद जितेन्द्र रेड्डी की जगह उतारा गया है।