केपी सिंह
खराब खाना दिये जाने की शिकायत की वजह से सीमा सुरक्षा बल से बर्खास्त किये गये जवान तेज बहादुर के द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में चुनावी ताल ठोके जाने की वजह से सियासी हालातों ने सनसनीखेज मोड़ ले लिया है।
समाजवादी पार्टी ने इसके बाद अपनी पूर्व घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव को चुनाव मैदान से हटाकर तेज बहादुर यादव को अपना प्रत्याशी अधिकृत कर दिया है। उधर उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल में शामिल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने भी तेज बहादुर यादव को समर्थन की घोषणा करते हुए उनसे मिलकर उन्हें गुलदस्ता भेंट कर डाला।
अभी भी इन लोगों को यह विश्वास नही है कि तेज बहादुर यादव प्रधानमंत्री को कोई कड़ी टक्कर दे पायेगें लेकिन उनकी उम्मीदवारी प्रधानमंत्री और उनकी पूरी पार्टी को ऐसी नैतिक चोट दे रही है कि समूची भाजपा की विद्रूप तिलमिलाहट इसके चलते सोशल मीडिया पर सामने आने लगी है।
तेज बहादुर यादव को सोशल मीडिया पर मोदी के अनुयायियों द्वारा गालियों की बौछार जैसे-जैसे तेज हो रही है वैसे-वैसे वे और ज्यादा सुर्खरू होते जा रहे हैं। जब तेज बहादुर यादव ने यह मामला उठाया था और उन्हें इसके चलते बर्खास्त किया गया था। तब देश में किसी ने विपरीत प्रतिक्रिया नही दी थी। उन लोगों ने भी प्रकट रूप में या खामोश रहकर तेज बहादुर के लिए हमदर्दी जताई थी जो आज गुस्से के मारे खूंटा तोड़े दे रहे हैं।
उन्माद का रूप ले चुकी मोदी भक्ति का ही असर है कि आज सोशल मीडिया पर तेज बहादुर को दाल की वजाय बिरियानी चाहिए थी जैसी बातें लिखकर धिक्कारने में कसर नही छोड़ी जा रही। हालांकि इससे विपक्ष का मकसद पूरा हो रहा है जो यह चाहता था कि भले ही मोदी को चुनाव में कोई बड़ी चुनौती पेश न की जा सके लेकिन फिर भी उनसे मुकाबला इतना चर्चा में रहे कि प्रधानमंत्री भी परेशानी महसूस करने लगें और यह हो रहा है।
वैसे चुनाव हारने-जीतने से किसी के गलत सही होने का फैसला नही होता। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजद हिंद फौज के तीन सबसे बड़े पदाधिकारियों में एक रहे कर्नल जीएस ढिल्लन को 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस समर्थित माधवराव सिंधिया के खिलाफ उम्मीदवार बनाया था। तब जनता पार्टी की लहर इतनी तेज थी कि उत्तर प्रदेश की पूरी 85 सीटें उसने जीत ली थीं।
मध्य प्रदेश में भी 40 सीटों में से 39 सीटें जनता पार्टी के खाते में आईं थीं। लेकिन केवल एक सीट जहां महान देश भक्त कर्नल जीएस ढिल्लन उम्मीदवार थे जनता पार्टी हार गई थी वह भी उन माधवराव सिंधिया से जिनके पूर्वजों पर प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों का साथ देकर रानी लक्ष्मीबाई को मरवा देने का आरोप था।
इतना ही नही महात्मा गांधी के पौत्र और जाने-माने पत्रकार राजमोहन गांधी को 1980 में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मध्य प्रदेश की सागर सीट से कांग्रेस के स्थानीय स्तर के नेता मुकुंद दुबे के मुकाबले जनता ने हरा दिया था। बाद में उन्होंने एक बार अमेठी में भी राजीव गांधी के मुकाबले कोशिश की लेकिन यहां भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।
अपने जमाने की चर्चित और मशहूर पत्रिका सरिता के खिलाफ मध्य प्रदेश के कांग्रेस से टोपी वाला सरनेम वाले एक सांसद ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। सांसद महोदय ने इसमें दलील दी थी कि वे इतने बड़े बहुमत से जीते हैं इसलिए समाज में उनका भारी स्वाभिमान स्वयं सिद्ध है।
जबलपुर हाईकोर्ट ने उनकी इस दलील को खारिज करते हुए कहा था कि चुनाव जीतना समाज में अति सम्मानित होने का प्रमाणपत्र नही माना जा सकता। चुनावी हार-जीत के पीछे कई कारक होते हैं। मोदी समर्थकों की गाली-गलौज के जबाव में तेज बहादुर यादव के जो समर्थक उन्हीं की भाषा के स्तर पर उतर रहे हैं उनके लिए वर्षों पहले जबलपुर हाईकोर्ट का यह फैसला काफी मौजू है।