जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. बिहार में जातिगत जनगणना को तेजस्वी यादव ने सियासी हथियार बनाने का फैसला किया है. जातिगत जनगणना ही बिहार में ऐसा मुद्दा है जिस पर नीतीश कुमार और तेजस्वी दोनों एकमत हैं. नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर बात करने के लिए प्रधानमंत्री से समय भी माँगा था लेकिन उन्हें समय नहीं मिल पाया. इधर संसद ने तय कर लिया है कि 2021 में जातिगत जनगणना नहीं कराई जायेगी.
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जो पत्र लिखा है उसमें एक तीर से दो निशाने साधे हैं. एक तरफ उन्होंने नीतीश कुमार द्वारा बात करने के लिए समय मांगे जाने पर भी समय न मिलने पर उन्हें बेचारा करार दे दिया है तो दूसरी तरफ बिहार में यह सन्देश में दे दिया है कि सरकार अगर जनहित में कोई कदम उठायेगी तो राजद सरकार के साथ खड़ा होगा.
तेजस्वी यादव के इस वार से जेडीयू बुरी तरह से तिलमिला गई है मगर वो खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रही है क्योंकि पीएम मोदी को लिखे पत्र में तेजस्वी ने नीतीश कुमार की मांग का ही समर्थन करते हुए कहा है कि अगर जातिगत आधार पर जनगणना की जाए तो सरकार को यह पता चल सकता है कि किस क्षेत्र में कितने लोग पिछड़े हैं और उस क्षेत्र को कितना बजट दिया जाना चाहिए. तेजस्वी के पत्र में यह लिखे जाने पर कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलने का समय माँगा और समय नहीं दिया गया, यह नीतीश कुमार का अपमान है, पर जेडीयू नेता ललन पासवान ने कहा कि संसद चल रही है, इसी वजह से प्रधानमंत्री बीजी हो सकते हैं, इस कारण मुलाक़ात नहीं हो सकी है. ललन सिंह ने कहा कि उनकी मुलाक़ात तो प्रधानमंत्री से हरदम होती रहती है. वह मिलना चाहें और मुलाक़ात न हो यह संभव नहीं है.
तेजस्वी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे के तहत सामूहिक लक्ष्य हासिल करने के लिए ही तो हर दसवें साल जनगणना कराई जाती है. 2021 में जनगणना प्रस्तावित है. संसद में लिखित सूचना दी गई है कि जातिगत जनगणना नहीं की जायेगी.
तेजस्वी ने लिखा है कि जातिगत जनगणना नहीं कराये जाने से पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षणिक स्थितियों की सही जानकारी ही नहीं हो पाती.जब सही जानकारी ही नहीं हो पाती तो फिर उनकी बेहतरी और उत्त्थान से सम्बंधित नीतियों का निर्धारण कैसे हो पाएगा. न नीतियां बन पाएंगी और न ही उनकी जनसँख्या के अनुपात में बजट आवंटन ही हो पाएगा. जातिगत जनगणना 1931 के बाद से नहीं की गई है. इस वजह से विभिन्न जातियों के आंकड़े सामने नहीं आ पाते.
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में तेजस्वी ने कहा है कि हमारी इस मांग और प्रस्ताव पर बीजेपी समेत बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों के विधायकों से 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था. केन्द्र और बिहार दोनों जगह एनडीए की सरकार है और इस मांग में एनडीए का समर्थन भी शामिल है.
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तेजस्वी यादव का कहना है कि 2019 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी यह आश्वासन दिया था कि 2021 में जातिगत जनगणना कराई जायेगी. शायद यही वजह रही हो कि बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर एनडीए की जीत हुई थी. सभी की अपेक्षा है कि बिहार में जातिगत जनगणना ही कराई जाए.