जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली. लड़ाकू विमान तेजस की पूरी दुनिया में धूम मची हुई है। इस लड़ाकू विमान को भारत में बनाया गया है। हाल के दिनों में कई देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। अब इस तेज का एक नया वर्जन आने वाला है, जो पहले से ज्यादा खतरनाक और ताकवर होगा। बुधवार को कैबिनेट ने इस पर मुहर लगा दी। इसके अलावा सरकार ने पांचवी पीढ़ी स्टील्थ टेक्नॉलॉजी को भी हरी झंडी दे दी है। आखिर तेजस के नए वर्जन में क्या होगा खास आईए जानते हैं…
तेजस सिंगल इंजन वाला हल्का लड़ाकू विमान है। कहा जा रहा है कि तेजस के नए वर्जन को तैयार करने में सरकार 6500 करोड़ रुपये खर्च करेगी। सरकार ने इससे पहले ढाई हज़ार करोड़ का फंड जारी करने की बात कही थी। अब कुल मिलाकर इस नए प्रोजेक्ट के लिए 9000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
जानें तेजस 2.0 में क्या है खास?
तेजस के नए वर्जन में ज्यादा ताकतवर इंजन लगाई जाएगी। इसमें पहले ज्यादा लड़ने की क्षमता होगी. साथ ही इसमें पहले के मुकाबले ज्यादा हथियार लादे जा सकेंगे।
तेजस मार्क-1A में GE-F404 की इंजन लगी थी, जिसमें पीक पावर की क्षमता 81 किलोन्यूटॉन्स थी। लेकिन अब नए वर्जन में GE-F414 की इंजन होगी। इसमें पीक वार की क्षमता 83 किलोन्यूटॉन्स होगी।
नया फाइटर स्वदेशी एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार से भी लैस होगा। बेहतर चपलता के लिए फाइटर के पास पंखों के ठीक आगे कैनर्ड भी होंगे। ज़ाहिर है इससे नए तेजस का वजन भी बढ़ जाएगा।
तेजस-1 का वजन 14.5 टन था। लेकिन अब ये बढ़ कर 17.5 टन पर पहुंच जाएगा। तेजस मार्क -2, 4.5 टन पेलोड ले जाने में सक्षम होगा। जबकि इससे पहले तेजस मार्क 1 में 3.5 टन की अधिकतम पेलोड क्षमता थी।
स्टेल्थ टेक्नॉलजी क्या है?
स्टेल्थ टेक्नॉलजी को भी मजबूत की जाएगी। बता दें कि इसका इस्तेमाल फाइटर जेट में किया जाता है। दरअसल साधरण फाइटर जेट अगर किसी दुश्मन के पास पहुंचता है तो रडार द्वारा उसका तुरंत पता लगाया जा सकता है। इसलिए स्टेल्थ टेक्नॉलजी के इस्तेमाल से दुश्मन को चकमा दिया जा सकता है। यानी एक ऐसा लड़ाकू विमान जो रडार की पकड़ में न आए। यानी उसकी मौजूदगी का अहसास कम से कम हो।
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फिलहाल ये तकनीक किन देशों के पास
अब जल्द ही इस तकनीक का इस्तेमाल भारत में भी किया जाएगा। ये तकनीक काफी महंगी और जटिल है। अमेरिका F/A-22 रैप्टर और F-35 लाइटनिंग फाइटर इससे लैस है। इसके अलावा स्टेल्थ टेक्नॉलजी का इल्तेमाल चीन के चेनगडु J-20 और रूस के सुकोई-57 में भी किया जा रहा है।
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