जुबिली न्यूज डेस्क
महापुरुषों के नाम पर राजनीति करना राजनीतिक दलों के लिए नया नहीं है। राजनीतिक दलों में तो महापुरुषों को अपना बताने की होड़ लगी रहती है।
ऐसा ही कुछ शनिवार को बनारस में दिखा। माघ पूर्णिमा के मौके पर बनारस में राजनीतिक सरगर्मी खूब देखने को मिली। राजनीतिक हस्तियों का बनारस आना और रैदास के मंदिर में पूजा-अर्चना करना, किसी के लिए अचरज भरा नहीं था।
जाहिर है अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है तो ये सब तो होना ही है। राजनीतिक दलों का महापुरूषों पर एकाधिकार दिखाना नया नहीं है।
हर साल की तरह इस बार संत रविदास जी की जयंती पर तीन दिनों के मेले का आयोजन किया गया, लेकिन इस बार कोरोना के चलते में कोरोना के चलते हजारों की भीड़ तो नहीं जुटी लेकिन राजनीतिक हस्तियों का जरूर जमावड़ा जुटा।
दिन की शुरुआत में दिन की शुरुआत में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पहुंचे और रैदास मंदिर में पूजा अर्चना में शामिल हुए। उन्होंने इस मौके पर संदेश दिया कि वह मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए हैं।
प्रधान के जाने के कुछ ही घंटों के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पहुंची। वह रविदासियों के धर्म गुरु निरंजन दास के चरणों में बैठकर, रविदासियों का लंगर खाकर समुदाय को सम्मान देते नजर आईं।
इस मौके पर प्रियंका गांधी ने जहां संत रैदास के सिद्धांतों और कर्मों का उल्लेख किया तो वहीं मोदी और योगी सरकार पर निशाना भी साधा।
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यूपी में अगले साल चुनाव होना है तो यहां सपा का पहुंचना भी जरूरी था। फिर क्या पूर्व मुख्यमंत्री व सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अपने लावा लश्कर के साथ संत रैदास के मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। अखिलेश ने भी गंगा-जमुनी तहजीब की हिमायत की।
यूपी में दलित राजनीति के उभरते युवा चेहरा चंद्रशेखर आजाद भी पीछे नहीं रहे। वह भी इस मौक़े पर मौजूद थे। योगी शासन में रासुका के तहत जेल जा चुके आजाद ने यहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीधी राजनैतिक चुनौती दी।
अब भला बसपा कैसे पीछे रहती। हां देश में दलित राजनीति की सबसे कद्दावर नेता, बसपा प्रमुख मायावती ने शायद मंदिर जाना जरूरी नहीं समझा और सिर्फ एक ट्वीट से रविदास जयंती की बधाइयां दीं।
1. ’मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का अमर मानवतावादी संदेश देने वाले महान संतगुरु रविदास जी की जयन्ती पर उन्हें शत्-शत् नमन व देश व दुनिया में रहने वाले उनके करोड़ों अनुयाईयों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। संतगुरु ने अपना सारा जीवन आदमी को इन्सान बनाने के प्रयास में गुज़ारा। 1/2
— Mayawati (@Mayawati) February 27, 2021
प्रियंका के दौरे से बदला माहौल
संत रविदास मंदिर में नेताओं का मत्था टेकना कोई नई बात नहीं है। चुनावी मौसम में अक्सर नेता इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2019 के लोक सभा चुनावों के पहले वह बनारस आए तो संत रविदास जी के दरबार में नतमस्तक हुए।
हालांकि इस बार वह खुद नहीं आए लेकिन उनकी जगह केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जिनका बनारस और रविदासी समुदाय के मुद्दों और मांगों से वास्ता कम है, मत्था टेकने पहुंचे। शनिवार को ही प्रधान के बाद रात होते -होते उत्तर प्रदेश उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी आशीर्वाद लेने आ गये।
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दरअसल मौर्या का आना अचानक ही नहीं था। वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, प्रियंका गांधी के यूपी दौरे से भाजपा काफी असहज हो जाती है। प्रियंका का जब भी कोई दौरा होता है तो वह चर्चा में आ जाता है। शनिवार को जब प्रियंका संत रैदास के मंदिर पहुंची और वहां लंगर खाया तो वह चर्चा में आ गया। इसी से परेशान होकर ही भाजपा को रात में केशव प्रसाद मौर्या को भेजना पड़ा।
वह कहते हैं कि जो राजनैतिक गतिविधियां बढ़ रही हैं, वह निश्चित रूप से कहीं न कहीं रविदासी समाज को अपने और आकृष्ट करने के लिए चेष्टा है। यह चेष्टा स्वाभाविक है, और अगर हो रही है तो उसमें कोई बुराई नहीं है. क्योंकि राजनीतिक व्यक्ति राजनीति करता तो समाज से ही है। समाज के ही लोग उसे वोट देते हैं। और रविदासी समाज के लोग भी मतदाता हैं।
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इस मामले में वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं कि एक तरह से इस आयोजन के बहाने सभी पार्टियों ने योगी सरकार को घेरने की कोशिशें की हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में रविदासी समाज के लिए बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है, लेकिन प्रदेश में दलितों की कुल आबादी 20 प्रतिशत से ज़्यादा है। जाहिर ऐसी कोशिश तो होनी ही है।
वह कहते है कि पिछले कुछ सालों में प्रदेश में दलितों के साथ उत्पीडऩ की घटनाएं बढ़ी हैं। इन सबको देखते हुए प्रियंका गांधी हों या अखिलेश यादव या फिर चंद्रशेखर रावण, इन सबकी कोशिश राज्य में दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने की है।
बसपा और भाजपा भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहेंगी। भाजपा ने भी धर्मेंद्र प्रधान और केशव प्रसाद मौर्या को रविदासी जंयती में भेजकर बीजेपी भी दलितों को साधे रखने की कोशिश की है।