Friday - 15 November 2024 - 10:38 AM

रमजान में घरों पर ही पढ़ें तरावीह

प्रमुख संवाददाता

लखनऊ। कोरोना वायरस की वजह से देश भर के मंदिर-मस्जिद बंद कर दिए गए हैं। शिया-सुन्नी धर्मगुरुओं के निर्देश के बाद जुमे की नमाज़ को भी मस्जिदों में अदा किये जाने पर रोक लगा दी गई है। रमजान करीब आ रहा है।

अप्रैल के आख़िरी हफ्ते में रमजान शुरू होगा। मुसलमानों के बीच पिछले कई दिनों से यह कशमकश चल रही है कि जुमे की नमाज़ पर भी मस्जिदों में रोक चल रही है।

ऐसे में रमजान में होने वाली तरावीह का क्या होगा। धर्मगुरुओं ने मुसलमानों से कहा है कि वह तरावीह की नमाज़ें भी अपने घरों पर ही अदा कर लें। कोरोना वायरस की वजह से वह इस रमजान में मस्जिदों में इकठ्ठा न हों।

मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा है कि मस्जिदों में नमाज़ के लिए इकठ्ठा होने से सोशल डिस्टेंस का फार्मूला फेल हो जाता है। सोशल डिस्टेंस को बनाए रखकर ही कोरोना वायरस से लड़ा जा सकता है। इसलिए यह बेहतर होगा कि इस रमजान में तरावीह की नमाज़ भी घर पर ही अदा की जाए।

तरावीह के दौरान नमाज़ के बाद कुरआन पढ़े जाने की परम्परा है। कुरआन में 30 पारे (अध्याय) होते हैं और रमजान में 30 रोज़े होते हैं। एक पारा रोज़ पढने से रमजान में रोज़ेदार एक कुरआन पढ़ लेता है।

तरावीह के दौरान जिन मस्जिदों में मौलाना दो पारे रोज़ पढ़ाते हैं वहां तरावीह 15 दिन की, जहाँ तीन पारे रोज़ पढ़ाते हैं वहां 10 दिन की तरावीह होती है। कुछ मस्जिदों में पांच पारे रोज़ पढ़ाकर पांच दिन में कुरआन खत्म करा दिया जाता है। व्यापार से जुड़े तमाम लोग अपनी सुविधा के हिसाब से उन मस्जिदों का चयन कर लेते हैं जहाँ पर 5 10 या 15 दिन में कुरआन खत्म करा दिया जाता है।

इस्लामिक सेंटर ऑफ़ इण्डिया के सर्वोसर्वा और ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद ने कहा है कि कोरोना के मद्देनज़र देश में लॉक डाउन चल रहा है। इस वजह से मुसलमान रमजान के दौरान अपने घरों में ही तरावीह पढ़ लें।

दारुल उलूम देवबंद के मौलाना गुलाम मुस्तफा वस्तानवी का कहना है कि लॉक डाउन के दौरान जब हम पाँचों वक्त की नमाज़ अपने घरों पर अदा कर रहे हैं तो फिर तरावीह को घर पर पढने में क्या परेशानी है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए यह फैसला लिया गया है। जब हम मजबूरी में मस्जिद में नहीं जा पा रहे हैं तो ऐसे हालात में हम घरों पर तरावीह पढेंगे तो हमें उतना ही सवाब मिलेगा जितना कि मस्जिद में पढने पर मिलता है। मौलाना गुलाम मुस्तफा दारुल उलूम देवबंद के पूर्व वाइस चांसलर हैं।

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