जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. अमरीकी फ़ौज की रवानगी के बाद तालिबान अफगानिस्तान पर काबिज़ होता जा रहा है. अफगानी फ़ौज हालांकि तालिबान से मोर्चा ले रही है मगर वह हर जगह तालिबान से हारती जा रही है. कहने के लिए अशरफ गनी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हैं मगर अब उनके हाथ में कुछ रह नहीं गया है. वह मदद के लिए दुनिया के सामने हाथ पसारे हुए हैं मगर कोई भी उनका मददगार नज़र नहीं आ रहा है.
अफगानिस्तान इन दिनों ऐसे युद्ध से गुज़र रहा है जिसमें सबसे बुरी स्थिति महिलाओं की हो गई है. भारतीय फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की अभी हाल में अफगानिस्तान में युद्ध की कवरेज के दौरान मौत हो गई थी. युद्ध की कवरेज करने वाले पत्रकारों और फोटोग्राफरों का तालिबान सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है. तालिबान नहीं चाहता है कि अफगानिस्तान में इन दिनों जो कुछ हो रहा है उस पर कुछ भी लिखा जाए.
अफगानिस्तान की एक युवा महिला पत्रकार हिकमत नूरी अपनी जान पर खेलकर युद्ध के बारे में लगातार खबरें लिख रही थीं लेकिन अब तालिबान उन्हें तलाश रहा है और वह बुर्के में खुद को छुपाकर तालिबान से खुद को बचाती घूम रही हैं. एक अंग्रेज़ी अखबार से बातचीत में हिकमत नूरी ने कहा कि अब तो मैं पूरी दुनिया से यही कहना चाहती हूँ कि वह मेरे हक़ में दुआ करें. मुझे नहीं पता कि अब अपने घर लौट पाउंगी या नहीं.
हिकमत नूरी ने बताया कि तालिबान ने मेरा शहर छीन लिया. मैं अपना घर और और अपनी पहचान दोनों छोड़कर भाग आई हूँ. मैं इस शहर को छोड़ना चाहती हूँ मगर हाइवे दोनों तरफ से ब्लाक हैं. वह बताती हैं कि मैं 22 साल की लड़की हूँ. अपने घर और घर वालों से दूर हूँ. मुझे पता है कि तालिबान घरों से जबरन बेटियों और बहुओं को अपने लड़ाकों के लिए उठवा रहा है. मेरे अखबार ने मुझसे साफ़ कह दिया कि सुरक्षित भाग पाओ तो भाग जाओ. अनजान नम्बर से फोन आये तो मत उठाना. अब दिक्कत है कि भागूं तो कहाँ भागूं. गलियों में लड़ाई चल रही है. बहुत नीचाई पर प्लेन और हेलीकाप्टर उड़ रहे हैं. गोलियां और राकेट लगातार चल रहे हैं.
नूरी ने बताया कि तालिबान से खुद को बचाने के लिए मैं बुर्का पहनकर भाग आई मगर आगे सारे रास्ते बंद हैं. सुरक्षित निकल पाने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता. घर पीछे छोड़ दिया है आगे बैरीकेड्स लगे हैं. फोन काम करना बंद कर चुके हैं. सड़कों पर तालिबान की चेकिंग चल रही है. सड़क से गुजरने के लिए उन्हें अपनी पहचान बताना ज़रूरी है. मैं अपनी पहचान भी नहीं बता सकती.
हिकमत नूरी ने बताया कि वो अपने अंकल के साथ उनके गाँव पहुँच तो गई हैं मगर उस गाँव पर भी तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है. इस गाँव के बहुत से लोग तालिबान से मिल गए हैं. तालिबान को जैसे ही पता चलेगा कि इस गाँव में शहर से कोई आया है वैसे ही यहाँ पर छापा पड़ेगा. उस छापे में खुद को बचा पाना आसान नहीं होगा. इस गाँव में बिजली-पानी और फोन सब काट दिया गया है. तालिबान ने गाँव को दुनिया से अलग कर दिया है.
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नूरी ने बताया कि तालिबान को जर्नलिज्म से नफरत है. अगर किसी को भी पता चल गया कि मैं जर्नलिस्ट हूँ तो वे मुझे मार डालेंगे. मुझे बस यह इंतज़ार है कि इस गाँव से निकलने का रास्ता खुल जाए तो मैं फ़ौरन यहाँ से निकल जाऊं. ऐसा होगा या नहीं यह पता नहीं है. मैं चाहती हूँ कि दुनिया मेरे लिए दुआ करे. अब सिर्फ दुआओं का ही सहारा है.