कुमार भवेश चंद्र
हम सभी इतिहास में दर्ज होने वाले दिनों के गवाह बन रहे हैं। पूरा देश..पूरी दुनिया जीवनकाल के नए अनुभवों से गुजर रही है। अभी तक भारत के लोग चीन और दुनिया के अलग अलग हिस्सों से कोरोना वायरस के प्रकोप से गुजर रहे अनुभवों को सुन रहे थे..जान रहे थे।
अब ये सब हमारे अपने अनुभव बनते जा रहे हैं। मानव सभ्यता के इतिहास में शायद ये पहला मौका है जब केवल एक देश नहीं, दुनिया के कई देश किसी संकट से बचने के लिए अपने घरों में कैद हो गए हैं।
बचपन में पाकिस्तान विभाजन के लिए चल रही लड़ाइयों की धुंधली यादें स्मृतियों में कहीं कैद है। शाम के बाद बरामदे में लालटेन के टिमटिमाने पर भी रोक थी।
खाना शाम होते ही बन जाता था ताकि आंगन से सटे बरामदे में चूल्हा घर से निकलने वाली रोशनी की चमक दुश्मन देश के विमानों तक ये खबर न पहुंचा दे कि, यहां आबादी है। गांव के गांव हजारों कोस दूर आसमान से खुद को वीरान दिखाने की हर वो कोशिश करता था, जो उसके वश में था।
मालूम नहीं वह सरकारी आदेश था या सामाजिक संयम। लेकिन हर परिवार का रुटीन बदला हुआ था। हर परिवार खुद में सिमटा हुआ था। सहमा था।
शाम में रेडियो से आने वाली खबर में हर घर और हर शख्स की रुचि थी। उसकी भी..जो ट्रांजिस्टर केवल गाने सुनने के लिए ही खोलता था। खबरें आने पर गाने वाले स्टेशन तलाशने के लिए रेडियो की घुंडी इधर-उधर घुमाने लगता था।
आज भी घरों में बंद हिंदुस्तान सांस रोककर कोरोनावायरस के असर के आंकड़ों के लिए व्यग्र होकर इंतजार कर रहा है। वह जानना चाहता है कि पूरे देश में इसका असर कितने लोगों तक पहुंचा? कितने लोग इसके असर से उबर रहे हैं?
मरने वालों की संख्या किस अनुपात में बढ़ रही है? खुद उनका प्रदेश या जिले पर इसका कितना असर है? संपन्न लोग भी अपने घरों में राशन के हिसाब किताब को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
मध्यमवर्ग और निम्नमध्यम वर्ग तो सबसे अधिक प्रभावित है। एक साथ वह कई मोर्चे पर जूझ रहा है। राशन की कमी से जूझ रहा परिवार सरकारी वादों को अपने पुराने अनुभवों को तौलता हुआ इधर-उधर हाथ पांव मार रहा है। सामान और जरूरी दवाइयां जुटा रहा है।
इन सबके बीच एक तबका है जो इस महामारी के प्रकोप के बावजूद अपनी नौकरी और जरूरी सेवाओं के जाल में उलझा है। उसमें सरकारी महकमों में ऊचे पदों पर तैनात अफसर भी हैं और कर्मचारी भी।
कोई राहत और बचाव की प्लानिंग में सुबह शाम ड्यूटी बजा रहा है तो कोई इस प्लानिंग को जमीन पर उतारने की जद्दोजहद कर रहा है। डॉक्टरों से लेकर अस्पतालों में छोटे बड़े पदों पर काम करने वाले भी इसका हिस्सा हैं।
पुलिस का पूरा महकमा है, जिनकी छुट्टियां कैंसल कर दी गई हैं। मीडिया के वो लोग हैं जिनके बगैर उनके संस्थानों में काम नहीं चल सकता। ये तमाम लोग के अपने संघर्ष हैं और उनके परिवारों में अलग तरह की चिंता? दुनिया भर में डॉक्टरों के संक्रमित होने की कहानियां उन्हें डरा रही हैं।
इन सबसे अलग एक और तबका है, जो इस वक्त सड़कों पर अपने जीवन का सबसे कठिन संघर्ष करता दिख रहा है। छोटी बड़ी नौकरी हो या मजदूरी के लिए अपने गांव से दूर दूसरे शहर में गए लोग तरह-तरह की आशंकाओं के बीच अपना अस्थायी ठिकाना छोड़, अपने गांवों की ओर चल पड़े हैं।
इनका संकट और संघर्ष इतना बड़ा है कि वे कोरोनावायरस के खतरों को भी दरकिनार कर केवल अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं। इसमें अकेले नौजवान भी हैं और पूरे परिवार के साथ चौतरफा संकट में घिरे लोग भी। इस हुजूम में शामिल हैं बूढ़े भी, जिन्हें कुछ श्रवण कुमार मिल गए हैं और वे भी जिनके साथ मासूम और दुधमुंहे बच्चे हैं।
इन सबके बीच देश को इस मुसीबत से निकालने की सरकारी और सांस्थानिक कोशिश भी हो रही है। नेताओं से लेकर अभिनेता और समाज के संपन्न और समृद्ध लोगों की ओर से उठ रहे मदद के हाथ भी दिखाई दे रहे हैं।
इंतजामों के बीच बदइंतजामी की तस्वीरें भी बन- बिगड़ रही है। हम और आप इन दृश्यों को भले भुला दें, लेकिन ये तस्वीरें इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं। नौजवान भारत के दिलो दिमाग में एक नजीर बन हमेशा हमेशा के लिए बस चुकी है।
आखिर में ये लाइनें। शायर बशर नवाज ने इन्हें फिल्म ‘बाजार’ में किसी आशिक की भावना को व्यक्त करने के लिए लिखी थी लेकिन अब ये मौजूदा हालात की तस्वीर बन गई है।
करोगे याद तो हर बात याद आएगी
गुजरते हर वक्त की हर मौज ठहर जाएगी ।।