जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. भारत के साथ चीन के बिगड़ते रिश्तों के बीच ताइवान भी चीन के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया है. ताइवान ने अपने पासपोर्ट से रिपब्लिक ऑफ़ चाइना शब्द हटाकर सीधे तौर पर चीन को यह चुनौती दे दी है कि अब वह उसे आधीन रहने को तैयार नहीं है.
ताइवान सरकार ने अपने पासपोर्ट से रिपब्लिक ऑफ़ चाइना शब्द हटाने के सम्बन्ध में कहा है कि पासपोर्ट पर चीन लिखा होने की वजह से ताइवान के यात्रियों को चीन का नागरिक समझकर उन पर कोरोना महामारी से सम्बंधित यात्रा प्रतिबन्ध लगाए जा रहे हैं. कई देशों में इस पासपोर्ट को देखकर यह भ्रम हो जाता है कि यात्रा करने वाला ताइवान का नहीं बल्कि चीन का नागरिक है.
उधर चीन शुरू से ही ताइवान पर अपना अधिकार जताता रहा है. 1949 में ताइवान की स्थापना चीनी गणराज्य के रूप में हुई थी. एतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से ताइवान को चीनी गणराज्य का अंग माना जाता है लेकिन इसकी स्वायत्तता को लेकर विवाद रहा है. ताइवान में रहने वाले अमाय, स्वतोव और हक्का भाषाएँ बोलते हैं.
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ताइवान के पास अपनी सेना है. वह खुद अपनी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है लेकिन इसके बावजूद चीन उस पर अपना मालिकाना हक़ भी जताता है. यहाँ तक कि चीन ने एलानिया यह कह रखा है कि जो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना से सम्बन्ध रखना चाहते हैं उन्हें रिपब्लिक ऑफ़ चाइना से सम्बन्ध तोड़ने होंगे. चीन की इस बात पर कौन से देश अमल करते हैं यह दूसरी बात है लेकिन ताइवान ने अपने पासपोर्ट से रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को हटाकर चीन को यह स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि अब ताइवान उसके नाम के साए में जीने को तैयार नहीं है.