शबाहत हुसैन विजेता हमें याद नहीं हैं वह पैदल लौटते मजदूर. सड़कों पर छप गए उनके खून सने पैरों के निशान कब के मिट चुके हैं. हमें याद नहीं है शाहीनबाग और लखनऊ के घंटाघर पर हज़ारों की तादाद में औरतें किस वजह से कई महीने तक मीटिंग करती रही …
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