लेखक अनुराग शुक्ला कभी हिंदुस्तानी देहात की गर्मी का सौंदर्य बड़ा भीषण हुआ करता था। रंभाती गाय-भैसों की आवाज़। धूप बहुत तीखी ,लेकिन नज़र भीचकर देखी गई मृग मरीचिका में भी बहुत सारी ऊब,आलस्य और रचनात्मकता झिलमिलाती नजर आती थी। तभी कंही इस कोने,कंही उस कोने से और कंही थोड़ा …
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