शबाहत हुसैन विजेता लखनऊ है तो महज़ गुम्बद-ओ-मीनार नहीं. सिर्फ एक शहर नहीं कूचा-ओ-बाज़ार नहीं. इसके दामन मोहब्बत के फूल खिलते हैं, इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं. हिन्दुस्तानी साहित्य में महज़ यही वो चार लाइनें हैं जो शहर-ए-लखनऊ की पहचान करा देती हैं. लखनऊ की पहचान को …
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