Thursday - 7 November 2024 - 9:40 AM

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# बिना_पते_की_चिट्ठियां

  वत्सला पाण्डेय मन के धूल भरे गलियारे में  फड़फड़ाती है अनगिनत चिट्ठियां वो चिट्ठियां जिन्हें नहीं मालूम होता अपना नसीब वो नहीं जानती कि लिखने के बाद उनका क्या होगा वो बस लिखी जाती है, उम्मीदों की स्याही से…. उन्हें चाह होती है कि उन्हें भरपूर मन से पढ़ा …

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वत्सला पांडेय की कविताएँ

रूठे हो या बहुत व्यस्त हो छोडो ये मसखरी सच बोलूं तो तुम बिन सूनी लगती है फ़रवरी साथ तुम्हारे इक इक पल में,सदियाँ जी लेती थी और नेह की हाला को गट गटकर पी लेती थी साथी तुम बिन बहुत अकेली भटकूँ मैं बावरी सच बोलूं तो तुम बिन …

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