वत्सला पाण्डेय मन के धूल भरे गलियारे में फड़फड़ाती है अनगिनत चिट्ठियां वो चिट्ठियां जिन्हें नहीं मालूम होता अपना नसीब वो नहीं जानती कि लिखने के बाद उनका क्या होगा वो बस लिखी जाती है, उम्मीदों की स्याही से…. उन्हें चाह होती है कि उन्हें भरपूर मन से पढ़ा …
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