केपी सिंह हिन्दी साहित्य क्षितिज के युग पुरूष मुंशी प्रेमचन्द ने साम्प्रदायिकता के खतरे से संबंधित एक लेख में कहा था कि साम्प्रदायिकता संस्कृति का मुखौटा ओढ़कर पैठ बनाती है और पैर फैलाती है। जबकि साम्प्रदायिकता का संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने उदाहरण देकर साबित किया था …
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