प्रशस्य दत्त आज शायद समाज में विवाह को एक बंधन जो दो लोगों को एक डोर में बांधता है उस तरह से देखते हैं ,शायद हम इसे कई बार ऐसे भी देखते हैं जहाँ समाज के दो सक्षम सदस्य और उनके परिवारों का आपसी मेल। ये परिभाषायें हमे कई बार …
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