प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव यह वह समय था जब स्टेडियम के आसपास कुछ भी नहीं था। बस सामने एक थका सा पार्क मुखर्जी फुहारऔर उसी में एक पान की दुकानऔर एक टी स्टाल हुआ करता था। फिर चौराहे का कायाल्प हुआ। दुकानें बनीं। यह बात है 1983 की। इन्हीं दुकानों में एक …
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