हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2076 चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से वासंती नवरात्र के साथ शुरू होगा। चैत्र नवरात्र में नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है।
प्रथम दिन कलश स्थापना के संग मां दुर्गा की प्रथम रूप माँ शैलपुत्री पूजा शुरू होती है। ब्रह्म पुराण की मानें तो ब्रह्मा ने इसी संवत में सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी।
इस मंत्र का करें जाप :-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
जाने माँ के प्रथम रूप की कहानी:-
नवरात्र के प्रथम दिन शैलपुत्री की पूजा होती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में शैलपुत्री अवतरित होती हैं। माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प होता है। मां शैलपुत्री नंदी नामक वृषभ पर सवार हैं और संपूर्ण हिमालय पर वह विराजमान मानी जाती हैं।
शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री कहलाता है। मां शैलपुत्री घनघोर तपस्या करने वाली और समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं। देवी शैलपुत्री की आराधना वह लोग जरूर करते हैं जो योग, साधना, तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण में रहते हैं। मां के आर्शीवाद के बिना हिमालय पर रहना संभव नहीं। तो आइए नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत में मां शैलपुत्री की आरती करें।
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पूजा विधि:-
मां शैलपुत्री की तस्वीर रखें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 होना चाहिए।
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