संध्या की बिखरी अलकों मे, निशा का फैला श्याम दुकूल, मूक है मद्धिम है पदचाप, तुमको प्रेम सौंपना भूल। अधर की पगली थी मदप्यास, तभी तो रहा तुम्हे था पूज। हाय रे भावुक था उन्माद, प्रलय का स्वागत करता ऊज। तुम्हारे रोदन की मुस्कान, उड़ाता आया उर मे धूल। हाथ …
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मैं कभी कभी भगवान होना चाहता हूं, और सृजन कर देना चाहता…
मैं कभी कभी भगवान होना चाहता हूं, और सृजन कर देना चाहता हूं नई दुनिया का। हां, नई सृष्टि जिसमें सिर्फ अंधेरा हो क्योकि अंधेरा सुकून भरा होता है और उजाला हमें थका देता है। अंधेरे के सुकून में मां की छांव होती है और बीड़ी के धुंए के छल्ले …
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