आकृति विज्ञा ‘अर्पण’ (युवा कवियत्री) जिक्र तेरा करते करते अंधियारे का छँट जाना आँखों की दोनों बत्ती का लैंप सरीखा उग जाना मितवा तेरे साथ लिखूं आधार उम्मीदों की नगरी तूने ही तो सिरजी मुझमें प्यार उम्मीदों की नगरी चेतन की बत्ती मन में लैंप भरोसे का जगमग अवचेतन भी …
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