मालविका हरिओम आज जैसे ही सीढ़ी की रेलिंग पकड़ी, सीढ़ी बोली, ‘रहम करो बहनजी’, कभी-कभार के लिए हूँ, दिन में दस-दस बार छत पर चढ़ने के लिए नहीं। क़सम से! जान ले रक्खी है मेरी। मेरी सीधाई का इतना भी फ़ायदा मत उठाओ। कुछ कहती नहीं हूँ इसका मतलब ये …
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