डा. रवीन्द्र अरजरिया देश की दलगत राजनीति ने आदर्शो, सिध्दान्तों और मान्यताओं को तिलांजलि देना शुरू कर दी है। व्यक्तियों की सोच अब स्वार्थपरिता के साथ कदमताल करने लगी है। निजी हित सर्वोपरि होते जा रहे हैं। राष्ट्रवादिता को नारे के रूप में प्रयुक्त करने वाले प्रत्यक्ष में भले ही …
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मुफ्तखोरी और तुष्टीकरण के मुद्दों को उठाने से कतरा रहे हैं राजनैतिक दल
डा. रवीन्द्र अरजरिया ईडी की कार्यवाही के विरोध में विरोधी दलों ने मोर्चे खोलना शुरू कर दिये हैं। कांग्रेस के मुखिया गांधी परिवार से पूछतांछ होते ही पार्टी ने सडकों पर जंग छेड दी। देश-प्रदेश की राजधानी से लेकर दूर दराज के इलाकों तक में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार …
Read More »अधिकारों पर अतिक्रमण का तीव्र होता दंश
डा. रवीन्द्र अरजरिया देश में सम्प्रदायवाद का जहर तेजी से घुलता जा रहा है। मजहबी दूरियां निरंतर बढतीं जा रहीं हैं। स्वाधीनता के बाद से पर्दे के पीछे चलने वाला षडयंत्र अब खुलकर ठहाके लगाने लगा है। राजनीति से लेकर फिल्मों तक ने जानबूझकर हौले-हौले देश को मानसिक गुलामी के …
Read More »भ्रष्टाचार की पींगें बढ़ाता मुफ्तखोरी का रिवाज
केपी सिंह पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के आयकर को सरकारी बजट से भरे जाने की प्रथा खत्म करने का फैसला लिया गया। जो 1981 से चली आ रही थी। 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पीवी सिंह ने मंत्रियों का अल्प वेतन और भत्ते देख उनका आयकर सरकारी खजाने से …
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