ह्रदय नारायण दीक्षित ‘मैं‘ से ‘हम‘ की अंतर्यात्रा आनंददायी है। ‘मैं‘ होना एकाकी है। एकाकी में उदासी है और विषाद है। ‘हम‘ सामूहिकता हैं और प्रसाद हैं । ‘मैं‘ होना दुखदायी है। ‘हम‘ होना विश्व का अंग होना है। ‘मैं‘ होना उल्लासहीनता है। ‘हम‘ होना उल्लासपूर्ण सांस्कृतिक अनुभूति है। ‘मैं‘ …
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अद्भुत और रहस्यपूर्ण है हमारा ब्रह्माण्ड
ह्रदय नारायण दीक्षित ब्रह्माण्ड रहस्यपूर्ण है। हम सब इसके अविभाज्य अंग हैं। यह विराट है। हम सबको आश्चर्यचकित करता है। इसकी गतिविधि को ध्यान से देखने पर तमाम प्रश्न उठते हैं। भारतीय ऋषि वैदिककाल से ही प्रकृति के गोचर प्रपंचों के प्रति जिज्ञासु रहे हैं। वैज्ञानिक भी प्रकृति के कार्य …
Read More »EARTH DAY : सभ्यता की दृष्टि सर्वाधिक दरिद्र है, वह विभेद का उत्सव मनाती है
डॉ श्रीश पाठक हमारी देह में भीतर-बाहर अरबों जीव पल रहे। वे हमारे अस्तित्व से अनभिज्ञ होंगे या सम्भवतः उन्हें एहसास भी हो। हमारी यह देह उनके लिए किसी ब्रह्माण्ड से कम नहीं। यह पूरा ब्रह्माण्ड इतना अधिक विशाल है कि यह हमारे कल्पना के अनंत से भी कई गुना …
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