उनका हिन्दी प्रेम बेमिसाल है। जब देखो, जहां देखो, हिन्दी के हिमायती बने विशुद्धता के साथ हिन्दियाते रहते हैं। हिन्दी के ऐसे-ऐसे शब्द, कोश से बीनकर, छाड़-फूंक कर लाते कि सुनने वाला चकरा जाए कि क्या यह हिन्दी ही है। उसे अपने हिन्दुस्तानी होने पर शर्मिन्दगी महसूस होने लगती। जब …
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व्यंग्य / बड़े अदब से : ये दाग अच्छे हैं
पश्चिमी बंगाल की राजधानी के एक सीलन भरी पुरानी इमारत के अंधेरे कमरे से, देश की सबसे बड़ी विधान सभा के चुनाव के लिए, उन्हें निकाला गया। झाड़ा-पोंछा गया। उनके सारे सर्किट मकड़जाल में घिरे हुए थे। कुशल हाथों में आकर उनमें आक्सीजन का संचार हुआ। बत्तियां जल उठीं। उन …
Read More »बड़े अदब से : अथ कुर्सी कथा
प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव जीरो बिजली बिल करने की सभी आमचीन नामचीन पार्टियों में होड़ सी लगी हुई थी। ऐसी ही एक चुनावी सभा की तैयारियां जोरों पर थीं। पुलिस का बंदोबस्त जबर्दस्त था। महाराजा टाइप की कुर्सियां मंच पर अगल-अगल बगल में रख दी गयीं। सभा शुरू होने में काफी वक्त …
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