योगेन्द्र द्विवेदी हम जिस भाषा में भी बात करें, जिस तरह की बात होगी वैसी ही भाव-भंगिमाएं हमारे चेहरे पर आएंगी। हमारी आंगिक मुद्राएं भी भाषा को सम्प्रेषक्षित करेंगी। जब फेस एक्सप्रेशन और बॉडी लेंग्वेज भाषा के साथ इतना न्याय करते हैं तो शब्द और वाक्य न्यास में भी ये …
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यूँ ही राह चलते चलते: अतीत के गुनगुने ख्वाब से रूबरू एक जीवंत दस्तावेज
कुमार भवेश चंद्र अपने अतीत की यादों से गुजरना अपने ही जीवन की दूसरी यात्रा की तरह ही होता है…इसमें सुख है.. दुख है…खुशियां हैं और संताप भी। लेकिन जो भी है बेगाना या अनजाना नहीं बल्कि अपना सा है। एक छोटी सी पुस्तिका के रूप में सावित्री सिनहा की …
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