प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव 1888 में अमीनाबाद एकदम जंगल हुआ करता था। सूरज ढलते ही यहां शरीफ आदमियों से यह स्थान खाली हो जाता था। यहीं पर एक तख्त पर बुद्धुलाल केसरवानी अपनी चटपटी चाट लगाते थे। लोग फुर्सत से आते और इत्मीनान से बैठ कर बतियाते। जब उनका नम्बर आता तभी …
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