ले चलो मुझे प्रिय जहां कभी मधुमास न हो, कलियों का परिमल,भंवरों का उपहास न हो मैने उदगारों से मांगी, अधरों की पागल मुसकानें, विस्मृत सा मै खडा हुआ था, कोई मेरी पीड़ा जाने। निराशा की नदिया मे बहकर मुझको अपने साथ ले चल, जहां कभी बरसात न हो। आज …
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