ह्रदय नारायण दीक्षित ‘मैं‘ से ‘हम‘ की अंतर्यात्रा आनंददायी है। ‘मैं‘ होना एकाकी है। एकाकी में उदासी है और विषाद है। ‘हम‘ सामूहिकता हैं और प्रसाद हैं । ‘मैं‘ होना दुखदायी है। ‘हम‘ होना विश्व का अंग होना है। ‘मैं‘ होना उल्लासहीनता है। ‘हम‘ होना उल्लासपूर्ण सांस्कृतिक अनुभूति है। ‘मैं‘ …
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