सैय्यद मोहम्मद अब्बास
लखनऊ। भारत में जब भी बैडमिंटन की बात होती है तो सबसे पहले हमारे जहन में प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद का नाम आता है। हालांकि ये दोनों खिलाड़ी भारत का गौरव हुआ करते थे।
अतीत में प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद का नाम बैडमिंटन की दुनिया अपना अलग मुकाम रखता हैं लेकिन इन दोनों के अलावा पुरुष बैडमिंटन में एक और सितारे ने धमाकेदार दस्तक दी थी।
हालांकि आज अफसोस है कि उस खिलाड़ी का करियर ज्यादा दिन तक नहीं रहा क्योंकि उसे वक्त से पहले ही मौत की नींद सुला दिया गया था।
जी हां हम बात कर रहे हैं सैयद मोदी की जो बैडमिंटन की दुनिया में इतना ज्यादा चमकता था कि चीन और जापान जैसे खिलाड़ी धमक से डर जाते थे, जहां एक ओर सैयद मोदी के खेल पर पूरी दुनिया को गर्व था लेकिन उनकी उपलब्धियों से ज्यादा उनकी विवादित मौत आज भी सुर्खियों का केंद्र हुआ करती है।
यूपी की राजधानी लखनऊ में उनकी याद में इन दिनों सैयद मोदी बैडमिंटन खेला जा रहा है लेकिन वहां पर मौजूद दर्शक उस ‘गुजरे जमाने’ के जमाने की चैंपियन को याद कर रहे हैं। हम आज उस सैयद मोदी की जिंदगी पर रोशनी डालें जिसमें भारत को एक अलग चैम्पियन दिखता था।
शुरुआती जीवन पर एक नजर
गोरखपुर की धरती कई चीजों के लिए याद की जाती है लेकिन इसी धरती से सैयद मोदी जैसे सितारे का जन्म 31 दिसंबर 1962 को हुआ था। उनका असली नाम सैयद मेहदी था।
उनके नाम को लेकर अजीब पहेली है। सैयद उनका सरनेम था लेकिन स्कूल में दाखिला लेने पहुंचे तो टीचर ने उनका नाम मेहदी के बजाय मोदी कर दिया था क्योंकि टीचर का मानना था कि मेहदी नाम कभी सुना नहीं था।
उनके 8 भाई-बहन थे लेकिन उनमें जो प्रतिभा थी वो अन्य में नहीं थी। शुरू से बैडमिंटन की तरफ उनका झुकाव आगे चलकर करियर में बदल गया।
नेशनल लेवल पर अपनी छाप छोड़ने के बाद सैयद मोदी कोलकाता में जूनियर नेशनल की अंडर 18 कैटगरी में सोना जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
बहुत कम लोगों को पता है कि नेशनल लेवल जब उनका चयन हुआ तब ट्रेनिंग कैंप से उन्हें शामिल नहीं किया गया क्योंकि वो काफी छोटे थे। 13 साल की उम्र में उनका खेल देखकर बैडमिंटन के कई जानकर हतप्रभ थे।
सैयद मोदी ऐसे आए थे सुर्खियों में
80 के दशक में प्रकाश पादुकोण बड़ा नाम हुआ करते थे क्योंकि ऑल इंग्लैंड चैंपियन जीते थे लेकिन साल 1980 में सैयद मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश पादुकोण को धूल चटाकर सनसनी फैला डाली थी।
इसके बाद तो सैयद मोदी ने पीछे मुडक़र नहीं देखा। 1980 में पहली बार नेशनल चैंपियन बनने के बाद वो अजेय रहे। साल 1980 से लेकर 1987 तक लगातार आठ साल नेशनल चैंपियन रहे थे।
इसी दौर में विमल कुमार भी बैडमिंटन की दुनिया में जाना-माना चेहरा बन चुके थे लेकिन वो भी सैयद मोदी को हरा नहीं पाये। फाइनल में चार बार मुकाबला हुआ लेकिन विमल कुमार सैयद मोदी को कभी हरा नहीं पाये।
उनका बैकहेंड दुनिया के अन्य खिलाडिय़ों से काफी अलग था। दरअसल उनके इस शॉट की खास बात ये थी कि उनके बैकहेंड की टायमिंग की गजब की थी और इस वजह से विरोधी अच्छे खासे परेशान रहते थे। फॉरवर्ड हाफ कोर्ट स्मैश और जंप स्मैश का तो कोई सानी नहीं था।
इंटरनेशनल स्तर पर धमक
सैयद मोदी ने 1982 के दौरान ब्रिस्बेन में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में एकल वर्ग में सोना जीतकर तहलका मचा दिया था जबकि इसी साल हुए एशियन गेम्स में उन्होंने देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। इसके बाद सैयद मोदी के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिताब 1983 और 1984 में दो बार ऑस्ट्रियन ओपन और 1985 में एक बार यूएसएसआर ओपन जीतकर अपनी अलग पहचान बनायी।
भारत ने खो दिया था एक चैंपियन
आज भी उनके खेल से ज्यादा उनकी मौत की चर्चा होती है। बात साल 1978 की है जब सैयद मोदी की मुलाकात अमिता कुलकर्णी से हुई थी। उसी दौरान लखनऊ में हुए बड़ी प्रतियोगिता में दोनों ने शानदार जीत दर्ज की थी। इसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया और मीडिया को जानकारी दी।
उनका विवाह कांग्रेस पार्टी के ताकतवर नेता और राजीव गांधी के करीबी संजय सिंह के घर पर हुई थी। हालांकि इस दौरान अमिता और संजय सिंह के कथित अफेयर की भी चर्चा खूब होने लगी थी। इस सब के बीच साल 1988 को 29 जुलाई को जो हुआ जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था।
सैयद मोदी जब लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम से अभ्यास करके बाहर निकलते तो उनका इंतेजार मौत कर रही थी और उनको सात गोलियां मारी गई और इस तरह से एक चैम्पियन खिलाड़ी दुखत अंत हो गया।