डॉ अभिनंदन सिंह भदौरिया
बुंदेलखंड मालवीय के नाम से जाने वाले संत प्रवर स्वामी ब्रह्मानंद जी का जन्म आज ही के दिन 4 दिसंबर 1984 को, बरहरा में मातादीन लोधी तथा यशोदा बाई के यहां हुआ था। 9 वर्ष की अल्प आयु में स्वामी जी का विवाह अमूंद गांव की राधा बाई के साथ हो गया। लेकिन भविष्य में कुछ और ही होने वाला था। विवाह के उपरांत उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम था बृजलाल, लेकिन पत्नी और पुत्र के सांसारिक बंधन उन्हें रोक नहीं सके बुद्ध की तरह स्वामी जी भी तीर्थ भ्रमण के उद्देश्य से 4 जून 1918 को अपनी पत्नी व संतान का मोह छोड़कर घर से निकल गए।
कानपुर से हरिद्वार पहुंचे और हर की पौड़ी में स्नान किया,स्वयं ही सन्यासी वस्त्र धारण कर लिए और अपना नाम स्वयं ब्रह्मानंद रख लिया। परम पूज्य स्वामी अखंडानंद जी की विशेष आग्रह पर वह पुनः अपने गांव बरहरा लौट आए परंतु घर में नहीं रुके ठहरे तो गांव के बाहर मंदिर में, 5 दिन का अल्प प्रवास किया। सन 1919 को जन्म भूमि तथा समस्त परिजनों को प्रणाम कर 23 वर्ष का वह युवा संन्यासी अपनी पत्नी तथा 15 माह के इकलौते पुत्र का लालन पालन अपने माता पिता पर छोड़कर अपने गुरु स्वामी अलख राम जी की शरण में पुनः हरिद्वार पहुंच गए और संन्यास की विधिवत दीक्षा ले ली।
स्वामी जी ने संन्यास ग्रहण करने के पश्चात आजीवन अपने हाथ से कभी संपत्ति को नहीं छुआ,स्वामी जी को शिक्षा के उन्नयन व प्रसार के लिए रात दिन प्रयत्नशील रहते हुए उस समय देखा जा सकता था। शिक्षा के प्रचार-प्रसार में स्वामी जी ने जीवन पर्यंत भागीरथ प्रयत्न किए। सन 1931 में स्वामी सर्वानंद जी के सहयोग से ग्राम इटौरा में ब्रह्मानंद विद्यालय की स्थापना की, कानपुर जेल प्रवास के समय स्वामी जी की मुलाकात सुप्रसिद्ध देशभक्त क्रांतिकारी राधा मोहन गोकुल से हुई। स्वामीजी के आमंत्रण पर वह अपने दो साथियों सहित खोही विद्यालय आ गए। क्योंकि ब्रह्मानंद विद्यालय खोही गांव में स्थानांतरित कर दिया गया था।
गोकुल जी विद्यालय संचालन के साथ साथ नवयुवकों के संगठन कार्य और क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े थे।
ब्रिटिश शासकों ने इस कारण विद्यालय पर कड़ी निगरानी लगा दी और विद्यालय बंद कर दिया गया। सन 1938 को जराखर में कांग्रेस पार्टी का विशाल सम्मेलन हुआ, तत्कालीन जिलाधिकारी सैयद सिद्धकी हसन ने जराखर कांग्रेस के आयोजन में बहुत सहयोग किया था, और स्वामी जी के प्रति अनन्य श्रद्धा भी रखते थे। हसन साहब ने जरा कर कांग्रेस के सम्मेलन में बचे 5000 रुपये विद्यालय की सहायता हेतु स्वामी को दे दिए।
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स्वामी जी के विशेष प्रयासों से 29 मई 1938 को राठ में ब्रह्मानंद विद्यालय की स्थापना की गई जो अब जनपद का सबसे बड़ा इंटर कॉलेज था। संस्कृत के अध्ययन के लिए 1943 में ब्रह्मानंद संस्कृत विद्यालय राठ की स्थापना हुई। स्वामीजी ने वर्ष 1960 में उच्च शिक्षा, कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ब्रह्मानंद महाविद्यालय की स्थापना की।
स्वामी जी की ऐसी लगन और निष्ठा को देखते हुए चंद्रभान गुप्त ने वर्ष 1958 में एक सार्वजनिक सभा में स्वामी जी को बुंदेलखंड का मालवीय के नाम से विभूषित कर दिया था।
वर्ष 1983 में ब्रह्मानंद वनस्थली की स्थापना उन्होंने धनोरी में की ताकि पर्यावरण सुधार के साथ-साथ जड़ी बूटियों और प्राकृतिक वन संपदा पर अनुसंधान व संरक्षण का कार्य प्रगति कर सके। स्वामी ब्रह्मानंद सच्चे देशभक्त और समाज सुधारक थे उन्होंने सामाजिक कुरीतियों अंधविश्वास ऊंच-नीच तथा विषमता के विरुद्ध संघर्ष किया। निर्बल,दलित,शोषित और महिलाओं के शोषण के विरुद्ध स्वामी जी ने अन्दर सदैव एक आग धधकती रहती थी,और वह समय-समय पर अपनी आवाज को हमेशा बुलंद करते रहते थे। उनका जीवन लोक सेवा के लिए समर्पित था यही कारण है कि आज भी राठ विधानसभा में उनका जन्म उत्सव प्रति वर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और बुंदेलखंड के लिए स्वामी जी एक प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
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(लेखक एक पीजी कॉलेज में प्राचार्य है, समय समय पर लेखन का कार्य करते रहते है)
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