विवेक अवस्थी
अन्ना आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को अपनी विधानसभा सीट पर आसानी से जीत मिलना मुश्किल नजर आ रहा है। गौरतलब है कि 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन होने के बाद केजरीवाल वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में उतरे और दिग्गज कांग्रेस नेता शीला दीक्षित को शिकस्त दी और मुख्यमंत्री बने। हालाँकि 49 दिन की सरकार चलाने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 2015 में उनके नेतृत्व में फिर से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 70 में 67 सीटों के साथ सत्ता में वापस आकर इतिहास रच दिया।
लेकिन इस बार उन्हे बीजेपी उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलने की सम्भावना है। भारतीय जनता पार्टी उनके खिलाफ नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व केन्द्रीय मंत्री और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को चुनाव मैदान में उतार सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में वकालत करती हैं बांसुरी
बता दें कि बांसुरी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की है और इनर टेम्पल से कानून की डिग्री ले चुकी हैं। अपने पिता की भांति वे भी आपराधिक मामलों की वकील हैं और दिल्ली हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में वकालत करती हैं।
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भाजपा की रणनीति
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी सीटों पर अपने पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। वहीं बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। यहां तक कि दिल्ली में पार्टी के सीएम उम्मीदवार की घोषणा भी नहीं की गई है। बीजेपी हर एक फैसला बड़ा सोच समझकर ले रही है। पार्टी की रणनीति उम्मीदवारों की घोषणा करके सबको चौंकाने की है।
बता दें कि दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से करीब 20 सीटों पर बीजेपी ऐसे बड़े चेहरों का ऐलान कर सकती है जिससे विपक्षी दल सोचने पर मजबूर हो जाएं। इन लोगों में राजनीतिक क्षेत्र के आलावा अन्य क्षेत्रों के महारथी भी शामिल हो सकते हैं।
इसके आलावा बीजेपी पंजाबी-पूर्वांचल संयोजन बनाकर भी दिल्ली की सत्ता में आने की रणनीति बना रही है। पार्टी ने मतदाताओं को लुभाने की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाबी के नेताओं को भी सौंपी है।
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वहीं कहा जा रहा है कि पार्टी हाईकमान दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को भी टिकट देने की रणनीति बना रही है।
गौरतलब है कि दिल्ली की सभी सीटों पर बहुजन समाज पार्टी और केंद्र में बीजेपी की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में पार्टी यहां की 12 आरक्षित सीटों में अपने उम्मीदवारों को लेकर भी गहन मंथन करने में जुटी है। इसलिए ही भाजपा अपने उम्मीदवारों की सूची जल्दबाजी जारी नहीं करना चाहती।
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कांग्रेस लड़ाई में नजर नहीं आ रही
इस चुनाव में अब तक के माहौल को देखा जाए तो कांग्रेस लड़ाई में नजर नहीं आ रही। हालांकि 2015 के मुकाबले कांग्रेस के प्रति लोगों का गुस्सा कम हुआ है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का वोट बैंक एक ही होने की वजह से फ़िलहाल बीजेपी को लाभ ही मिलने की सम्भावना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)