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आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उठाएगा बिहार में सियासी तूफान

न्यूज डेस्क

2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर एक बयान दिया था। उनके बयान ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की लुटिया डुबो दी थी। अब एक बार फिर बिहार में आरक्षण का जिन्न निकल आया है। हालांकि आरक्षण का जो मामला है वह उत्तराखंड से जुड़ा है लेकिन इसको लेकर सियासी उबाल बिहार में हैं।

बिहार में एनडीए के नेता परेशान हैं। साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि इस मामले का तोड़ कैसे निकाले। हालांकि इसको लेकर एनडीए के दो सहयोगी दलों ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार को जल्द से जल्द पुनर्विचार याचिका दायर कर इस फैसले के खिलाफ जाना चाहिए। दरअसल एनडीए के नेता पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर डरे हुए हैं। उन्हें डर है कि राजद पिछले चुनाव की तरह इस बार भी कही इसे मुद्दा न बना दे।

दरअसलन सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी और प्रमोशन में आरक्षण पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में इस बात का जिक्र किया कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के लिए कोटा और आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यों को कोटा प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और राज्यों को सार्वजनिक सेवा में कुछ समुदायों के प्रतिनिधित्व में असंतुलन दिखाए बिना ऐसे प्रावधान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बिहार का सियासी माहौल गर्म हो गया है। सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों इसे लेकर मुखर हो गए हैं। एनडीए की दो सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड जदयू और लोक जनशक्ति ने इस फैसले के विरोध में अपना झंडा बुलंद कर दिया है तो वहीं आरक्षण के मुद्दे पर 2015 विधानसभा चुनाव में जमकर वोट बटोर चुकी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी इस मामले को लपक लिया है।

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राजद नेता तेजस्वी यादव ने ऐलान करते हुए ट्वीट किया, ‘BJP और NDA सरकारें आरक्षण खत्म करने पर क्यों तुली हुई है? उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने आरक्षण खत्म करने लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा। आरक्षण प्राप्त करने वाले दलित-पिछड़े और आदिवासी हिंदू नहीं है क्या? BJP इन वंचित हिंदुओं का आरक्षण क्यों छीनना चाहती है। हम केंद्र की एनडीए सरकार को चुनौती देते है कि तुरंत सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करें या फिर आरक्षण को मूल अधिकार बनाने के लिए मौजूदा संसद सत्र में संविधान में संशोधन करें। अगर ऐसा नहीं होगा तो सड़क से लेकर संसद तक संग्राम होगा। ‘

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वहीं अपने दूसरे ट्वीट में तेजस्वी यादव ने लिखा, ‘आरक्षण संवैधानिक प्रावधान है। अगर संविधान के प्रावधानों को लागू करने में ही किंतु-परंतु होगा तो यह देश कैसे चलेगा? साथ ही आरक्षण समाप्त करने में भाजपा का पुरजोर समर्थन कर रहे आदरणीय रामविलास जी, नीतीश कुमार जी, अठावले जी और अनुप्रिया जी भी इस पर स्पष्ट मंतव्य जारी करें।’

वहीं लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आरक्षण की अवधारणा के खिलाफ है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘लोक जनशक्ति पार्टी कोर्ट के इन तथ्यों से सहमत नहीं है। एलजीपी सरकार से मांग करती है कि भारत के संविधान के मुताबिक आरक्षण की रक्षा करे’।

दरअसल एनडीए नेताओं की चिंता यूं ही नहीं है। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में मोहन भागवत के बयान को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने किस कदर भुनाया था और परिणाम अपने पक्ष में कर लिया था, बीजेपी को इसका बखूबी एहसास है। भागवत के बयान पर पीएम मोदी और बिहार के नेताओं की सफाई भी काम नहीं आई थी। लालू ने इसे खूब उछाला और जमकर वोट बटोरा था। इसलिए इस बार बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि केंद्रीय नेतृत्व इस मसले पर जल्द ही कोई जरूरी कदम उठायेगा।

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