जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. शराबबंदी को लेकर बिहार की नीतीश सरकार द्वारा दायर 40 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि शराबबंदी के मामलों ने अदालतों का दम घोंट रखा है. पटना हाईकोर्ट के 14-15 जज सिर्फ इन्हीं मामलों की सुनवाई में लगे हुए हैं.
दरअसल नीतीश कुमार की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शराबबंदी क़ानून के तहत आरोपितों की अग्रिम और नियमित ज़मानत के मामलों को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पटना हाईकोर्ट में रोजाना ऐसी याचिकाएं आती हैं. जिन्हें सूचीबद्ध होने में ही साल भर से ज्यादा का वक्त लग जाता है. इन याचिकाओं की वजह से 14- 15 जज इसी काम में उलझे रहते हैं और हाईकोर्ट के बाकी काम रुके हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के वकील ने कहा कि पटना हाईकोर्ट शराबबंदी बंदी मामलों के आरोपितों को लगातार ज़मानतें दे रहा है जबकि शराब पकड़े जाने पर 10 साल की सज़ा का प्राविधान है. ज़मानतें मिलती रहेंगी तो आबकारी क़ानून का लक्ष्य ही हार जायेगा. वकील के इस तर्क पर नाराज़ सीजेआई ने पूछा कि आपने क़ानून बना दिया है तो क्या ज़मानतें न होने दी जाएं.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शराबबंदी से जुड़े मुकदमों की वजह से दूसरे अपराधों के मुकदमों पर सुनवाई ही नहीं हो पा रही है. बिहार सरकार के मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 की वजह सेर पटना हाईकोर्ट के कामकाज पर बहुत बुरी तरह से प्रभाव पड़ा है. सारी अदालते शराब क़ानून के उल्लंघन की वजह से पकड़े गए लोगों की ज़मानत याचिकाओं की वजह से भरी हुई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब हत्या के मामलों में ज़मानत मिल जाती है तो शराबबंदी उल्लंघन के मामलों में ज़मानत क्यों नहीं मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की 40 याचिकाओं को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारें बगैर अध्ययन किये हुए क़ानून बनाती हैं जिसका खामियाजा अदालतों को भुगतना पड़ता है.
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